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Animal Husbandry: इन 7 प्वाइंट्स में जानें, पशु के बछड़े को होने वाली समस्याएं और उसका हल

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. भारतीय अर्थव्यस्था में पशुपालन का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है. खासकर ग्रामीण किसानों की आय का प्रमुख स्रोत पशुपालन ही है. पशुओं से प्रोटीन का स्रोत दूध तथा इससे बने उत्पाद, मांस से बनी वस्तुएं तथा चमड़े से बनी उपयोगी चीजों इत्यादि की प्राप्ति होती है. जो आम इंसानों के लिए बेहद ही जरूरी है. पशुओं की नयी पीढ़ी उनके बछड़ों से तैयार होती है, परन्तु यदि इन नवजात बछड़ों-बछड़ियों की उचित देखभाल न की जाये, तो इनकी मृत्युदर में वृद्धि हो सकती है.

इससे किसान को आर्थिक तौर पर तथा पशुधन दोनों की भारी हानि हो सकती है. इसलिए पशुपालन करने वालों के लिए ये जानना बेहद जरूरी होती है कि उनकी समस्याएं क्या हैं और किस तरह से पशुओं के बछड़ों की केयर की जाए. पशु के बछड़ों को जन्म के बाद कई तरह की समस्याएं होती हैं, इस आर्टिकल में कुछ समस्याएं और उसके हल के बारे में बात करने जा रहे हैं जो किसानों के लिए बेहद ही अहम हैं.

  1. जन्म के समय नवजात शिशु में चोट लगने तथा यदि कठिन ब्यांत हो रहा हो, तो ऑक्सीजन की कमी के कारण सांस लेने में परेशानी बढ़ सकती है. इस समस्या से निदान पाने के लिए ब्यांत के बाद मादा पशु को उसके शावक को चाटने देना चाहिए तथा उसके नाक तथा मुंह से तरल चिपचिपे पदार्थ को निकाल देना चाहिए और उसके शरीर को रगड़ना चाहिए. इससे उसके शरीर का तापमान कम नहीं होगा तथा उसे श्वसन क्रिया में आसानी होगी.
  2. सुस्तपन होने की शिकायत भी होती है. सामान्यत बछड़ी-बछड़ा को 9 घंटे के भीतर खड़ा हो जाना चाहिए. यदि बछड़ा खड़े होने में देरी लगाये और दूध पीने में रुचि न दिखाए, तो यह सुस्तपन का संकेत है.
  3. सुस्तपन के प्रमुख कारणों से हो सकता है, खून में ऑक्सीजन की कमी हो सकती. इससे पेट में अम्लता बढ़ती है तथा खून में ग्लूकोज की कमी हो सकती है.
  4. इन सब कारणों के चलते बच्चा, मां का प्रथम दूध जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं, उचित मात्रा में नहीं पी पाता. इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कारक (इमुनोग्लोबुलिन). शरीर में नहीं पहुंचता और बछड़े-बछड़ी को रोग होने का खतरा बढ़ जाता है.
  5. शुरूआत में बच्चे को मां का दूध थन से पीने देना चाहिए तथा धीरे-धीरे उसे बोतल से दूध पीने की आदत डालनी चाहिए. ऐसा करने से उसे जरूरत के हिसाब से संतुलित मात्रा में दूध पिलाया जा सकता है.
  6. जन्म के एक घंटे के भीतर कोलोस्ट्रम का पिलाना बहुत ही आवश्यक होता है. इससे शावक की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है और रोग के होने का खतरा टल जाता है.
  7. बछड़े-बछड़ी के साथ-साथ उसकी मां को थनैला रोग न हो, इसका भी ध्यान देना चाहिए. इस रोग के होने पर दूध की गुणवत्ता प्रभावित होगी, जो बछड़े और जन मानस दोनों के लिए ही हानिकारक है.

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