नई दिल्ली. डेयरी उद्योग और पशुपालकों की पसंदीदा अभी भी देसी गायें बनी हुई हैं. ये गायें काफी पर्याप्त मात्रा में दूध देती हैं. जिसकी बिक्री से पशुपालकों को तगड़ा मुनाफा होता है. शहर हो या देहात, सभी जगह पशुपालन से पशुपालक खेती के साथ साथ अपनी इनकम को बढ़ा रहे हैं. देहात में खेती-किसानी के बाद आमदनी का सबसे तगड़ा स्रोत पशुपालन को ही माना जाता है. गाय और भैंस को पालकर किसान काफी अच्छी इनकम कर रहे हैं. वैसे तो देश में कई नस्लों की गाय हैं, आज हम बात कर रहे हैं गुजरात की एक ऐसी नस्ल की गाय की जिसका घी बेहद फेमस है. ये गाय है कांकरेज, ये गुजरात के साथ ही राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में पाई जाती है.
कांकरेज गाय गुजरात की एक दुधारू गाय के रूप में देखी जाने वाली गाय की नस्ल है. इस गाय को दुग्ध उत्पादन और खेती के लिए जाना जाता है. ये गुजरात और राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है. पशुपालन में आज गाय के दूध और घी से ही नहीं बल्कि गायों के गोबर और मूत्र से भी पशुपालक अपनी इनकम को बढ़ा रहे हैं.
कांकरेज गाय की विशेषताएं: कांकरेज गाय की विशेषता की बात करें तो यह एक दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल है. दूध के साथ ही इसका उपयोग भार उठाने के लिए भी करते हैं. ये गाय गर्मी के प्रति सहनशील होती है और बिना हरे चारे के भी दूध दे सकती है. कांकरेज गाय में रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद अच्दी होती है. ये गाय आसानी से बीमार नहीं पड़ती है. ये गाय एक भारी शरीर वाली गाय है. कांकरेज गाय के सींग नुकीले होते हैं.
इस रंग में मिलती है कांकरेज गाय: कांकरेज गाय चांदी-ग्रे, लोहे के भूरे या स्टील काले रंग की होती है. इसका मुंह छोटा और चौड़ा होता है. इसका चेहरा थोड़ा छोटा होता है और नाक का आकार ऊपर की ओर होता है.
दूध होता है पौष्टिक: कांकरेज गाय से मिलने वाले दूध के मामले में अगर बात की जाए तो इस गाय से एक दिन में करीब 6 से 10 लीटर दूध मिलता है. इस गाय का मुंह छोटा और चौड़ा होता है. अगर इस गाय के लिए चारे और पानी की अच्छी व्यवस्था हो और अच्छा वातावरण मिल जाए तो इस गाय से रोजाना करीब 15 लीटर दूध तक लिया जा सकता है. कांकरेज के साथ ही गुजरात में कुछ और नस्लों की गायों का पालन भी किया जाता है. जिनमें गिर गाय प्रमुख है.
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