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Animal Husbandry: पशुओं की कब नहीं करनी चाहिए डीवार्मिंग, जानें इस बारे में एक्सपर्ट की राय

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. जानवरों में कीड़ों की समस्या बहुत गंभीर होती जा रही है. इसके चलते जानवरों का उत्पादन घट रहा है. उत्पादन कम होने की वजह से पशुपालकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस नुकसान से बचाव करने के लिए पशुपालक कीड़ों को मारने की दवा पशुओं को पिलाते हैं लेकिन दिक्कत ये भी है कि इन दवाओं का असर अब कीड़ों पर बहुत ज्यादा नहीं होता है. कीड़ों ने दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है. हालांकि दवाओं का इस्तेमाल करने से पशुपालकों को पैसा खर्च करना पड़ता है लेकिन इसका फायदा नहीं हो रहा है.

गौरतलब है कि कीड़ों को मारने की दवा का इस्तेमाल का तरीका है. इसे जाने बिना दवाओं का इस्तेमाल करना ज्यादा फायदेमंद नहीं है. एक्सपर्ट का कहना है कि हर वक्त कीड़ों को मारने की दवा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इससे पशुपालन में लागत को कम किया जा सकता है.

मौसम परिस्थिति
देखा गया है कि बहुत से पशुपालक बड़े ही नियमित तरीके से डीवार्मिंग के एक निश्चित कार्यक्रम का पालन करते हैं. हकीकत में इसे मौसम की परिस्थितियों से जोड़ा जाना चाहिए. आमतौर पर गर्म और सूखे मौसम में डीवार्मिंग की आवश्यकता नहीं होती लेकिन पर्याप्त रूप से वर्षा के बाद वातावरण में या चरागाह में संक्रामक परजीवी डिम्भकों की संख्या बढ जाती है. ऐसे में डीवार्मिंग और आवश्यक हो जाता है. इसी प्रकार शीतकाल में जब तापमान 10 डिग्री सेन्टीग्रेड से कम हो तो भी डीवार्मिंग करना जरूरी है. किसान भाइयों को मौसम की परिस्थितियों के आधार पर ही तय करना चाहिए कि परजीवीनाशन आवश्यक है या नहीं.

इव ववक्त कम हो जाते हैं कीड़े
पशु आहार एवं परजीविता में गहरा सम्बन्ध पाया गया है. इस बात के प्रमाण हैं कि पशु आहार में प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा होने पर परजीविता में कमी पाई गई है तथा आहार में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाये जाने से परिप्रसव काल में मल में परजीवी अंडो की संख्या में भी कमी देखी गई है. पशुओं में अर्जित रोग प्रतिरोधकता भी पशु आहार में प्रोटीन की मात्रा पर निर्भर करती है और देखा गया कि प्रचुर प्रोटीन मात्रा वाले आहार से पोषित पशु या बकरी मेमनों में अधिक परजीवी प्रतिरोधकता पाई गई है. आहार में कोबाल्ट कॉपर, मोलीबिडीनम आदि खनिजों की कमी भी पशुओं में परजीविता को जन्म दे सकती है. इसलिए जरूरी है कि पशु आहार प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा के साथ-साथ खनिज मिश्रण से पूरित हो.

ऐसे में पशु कीड़ों से खुद बचा लेते हैं
प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कुछ आहार जिनमें संघनित टैनिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है के पशु आहार के साथ प्रयोग करने से पशु परजीवी में कमी देखी गयी है. संघनित टैनिन का पशु आहार में प्रयोग आंत्र में पाचन के लिए उपलब्ध प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है और इस प्रकार से पशु की परजीवी प्रतिरोधकता में वृद्धि करता है. लेकिन इसके विपरीत संघनित टैनिन मोनोगेस्टिक पशुओं में विषाक्तता और स्वाद में अरूचिकर होने के कारण पशु में आहार ग्रहण मात्रा को कम करता है. जैव-चारा का प्रयोग परजीवीनाशन के लिए हो सकेगा या नहीं भविष्य के अध्ययनों पर निर्भर करेगा.

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