नई दिल्ली. जिस तरह से अच्छी क्वालिटी का खाना इंसानों के लिए जरूरी है, ठीक उसी तरह से पशुओं से बेहतर उत्पादन लेने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला चारा खिलाना चाहिए. दरअसल, सरकारी नियमों की खामियों के कारण कई बार बाजार में गुणवत्ताहीन सामग्री भी आसानी से खपा दी जाती है. खासतौर पर पशु आहार के मामले में तो कोई क्वालिटी का ध्यान ही नहीं रखता है. बता दें कि पशुपालन विभाग को इसकी सैंपलिंग और जांच का अधिकार नहीं होने के कारण बाजारों में प्रतिदिन नित नए ब्रांड आ रहे हैं जो कि पशुपालकों की जेब पर कई बार भारी पड़ जाती है.
सरकार के स्तर पर पशु आहार के मामले में गुणवत्ता निगरानी नहीं होने के कारण इससे संबंधित इकाइयों के लिए बिना किसी झंझट का बाजार बना हुआ है जिसके चलते आए दिन ब्रांड मार्केट में आ रहे लेकिन उनकी गुणवत्ता सिद्ध करने का न कोई पैमाना है और न ही जांच होती है. कई व्यापारी तो बिना प्रमाण ही ऐसे पशु आहार की जमकर बिक्री कर रहे हैं.
मिलाया जाता है पत्थर का पाउडर
एजेंट पशुपालकों को आहार की खूबियां बताकर खरीदने को कहते हैं लेकिन पशुपालक के लिए इससे पहले खूबियां जांचने का कोई नियम नहीं है. ऐसे में कई बार मिलावटी और अन्य खतरनाक मिलावट होने पर पशुपालकों को इनकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है क्योंकि कई बार पशु इनकी वजह से बांझपन सहित अन्य विकार के शिकार हो जाते हैं. अटेली क्षेत्र में सरसों की खल का ज्यादा उपयोग होता है, जिसमें मिलावटखोरी का जमकर खेल चलता है. आसपास के रेवाड़ी, अलवर, नारनौल और खैरथल में इस तरह तेल निकालकर खल बनाने के खूब सेंटर खुले हुए हैं. कई गांवों में अन्य जगह से खल लाकर बेची जाती है जिसमें वजन बढ़ाने के लिए पत्थर का पाउडर मिलाया जा रहा है.
पोषक तत्वों का किया जाता है दावा
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह पशुओं के लिए खतरनाक है. शुरुआत में असर नहीं दिखता, लेकिन धीरे-धीरे पशु बीमार पड़ने लगते हैं. अब तक किसी विभाग ने में पशु आहार की सैंपलिंग नहीं की है. बाजार 50 किलो का बैग 850 रुपए से 2000 रुपए तक बिक रहा है. इनमें गेहूं भूसा, मक्का, ज्वार और प्रोटीन मिलाकर आहार तैयार किया जाता है. इनमें क्रूड प्रोटीन, अपरिष्कृत वसा, कच्चा फाइबर, अम्ल अघुलनशील राख, कैल्शियम, फास्फोरस और एपलाटॉक्सिन बी जैसे पोषक तत्व बताए जाते हैं.
गुमराह हो रहे हैं पशुपालक
बैग पर लिखा जाता है कि यह आहार ब्यांत के समय के लिए है. जबकि पशु चिकित्सकों द्वारा ब्यांत से 15 दिन पहले और 45 दिन बाद तक खिलाने की सलाह दी जाती है.दावा किया जाता है कि यह आहार कमजोरी, जेर न डालने और बार-बार फिरने की समस्या दूर करता है. इसे पशु विशेषज्ञों की मंजूरी और क्वालिटी कंट्रोल की निगरानी में तैयार बताया जाता है. इसमें ज्यादा प्रोटीन, फैट, खनिज, विटामिन और खास फीड सप्लीमेंट होने का दावा किया जाता है. यह आहार पशु की सेहत, दूध उत्पादन, जल्दी हीट में आने और गर्भधारण में मददगार बताया जाता है लेकिन इन दावों की कोई जांच नहीं होती. न ही कोई विभाग सैंपल लेकर सच्चाई परखता है. इससे पशुपालक गुमराह हो रहे हैं और पशुओं की सेहत से खिलवाड़ हो रहा है.
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