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Animal Husbandry: इस तरह का आहार खाने से पशुओं की सेहत हो जाती है खराब, यहां पढ़ें इलाज

सीता नगर के पास 515 एकड़ जमीन में यह बड़ी गौशाला बनाई जा रही है. यहां बीस हजार गायों को रखने की व्यवस्था होगी. निराश्रित गोवंश की समस्या सभी जिलों में है इसको दूर करने के प्रयास किया जा रहे हैं.
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. कभी-कभी जब पशु जब कोई विषाक्त आहार खा लेता है ये उनकी हैल्थ के लिए बेहतर नहीं होता है. जिसके चलते उसकी स्वास्थ्य संबंधित कई तरह की दिक्कत हो जाती हैं. ऐसे में पशुपालकों के दिमाग में सवाल आता है कि क्या वह सभी आहार में विषाक्ता होती है या फिर कुछ खास किस्म के आहार में ही ये होती है. जिसे विषाक्ता की श्रेणी में रखा जाता है. अगर ऐसा है तो पशुपालक अपने पशुओं को उससे कैसे बचाएं ये बड़ा सवाल उनके सामने होता है. इस संबंध में एक्सपर्ट डॉ राजेश नेहरा सहायक आचार्य पशु पोषण विभाग पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय बीकानेर का कहना है कि सभी आहार विषाक्त नहीं होती है.

उनका कहना है कि कुछ आहार में एंटी न्यूट्रिशन फैक्टर बहुत ज्यादा मात्रा में हो जाता है. कई बार आहार को सही तरह से रखरखाव नहीं किया जाता है. जिसके कारण पशुओं के आहार में फंगस की समस्या आ जाती है. ये भी पशुओं में विषाक्त पैदा कर देता है. इसलिए इन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है कि आहार का रखरखाव अच्छी तरह से करा जाए और उसमें एक्स्ट्रा न्यूट्रिशन फैक्टर न आ पाए.

क्यों होती है विषाक्ता
जुगाली करने वाले पशु अक्सर जाने अनजाने में ऐसे चारे का सेवन कर लेते हैं, जिनसे उन्हें पेट संबंधी समस्याएं हो जाती हैं. यह परेशानी केवल चारे से ही नहीं कभी-कभी पशुपालक द्वारा दिए जाने वाले आहार की वजह से भी हो जाती है. पशुओं के चारे में मुख्य रूप से तीन तरह के विषाक्ता देखी जाती है. साइनाइड विषाक्ता, नाइट्रेट और ऑक्सलेट विषाक्ता. साइनाइड विषाक्त संयोजेनिक पौधे जैसे बाबुल ज्वार जैसे और गन्ने की पत्तियां मक्का या मूंग से हो सकती है. वहीं नाइट्रेट विषाक्त नाइट्रेट फसलों से हो सकती है. ऑक्सलेट विषाक्त पौधों को अधिक मात्रा में खाने लेने से हो जाती है.

कैसे करें इसका इलाज, जानें यहां
पशुओं में विषाक्ता के लक्षण की बात की जाए तो ऐसी कंडीशन में पशुओं की मुंह लार बहने लगती है. सांस लेने में तकलीफ होती है. पशु की मांसपेशियों में ऐठन होने लगती है. आंख, नाक, मुंह की श्लेष्मा झिल्ली का रंग गहरा हो जाता है. पशु का लड़खड़ा कर चलना शुरू कर देते हैं. उपचार के अभाव में पशुओं की मौत भी हो जाती है. उपचार के तौर पर पशुपालकों को कई सावधानी बरतनी चाहिए. साइनाइड विषाक्त के लिए 3 ग्राम सोडियम नाइट्रेट और 15 सोडियम थायु सल्फेट 200 एमएल डिस्टिल्ड वॉटर में घोलकर इंजेक्शन लगाना चाहिए. नाइट्रेट विषाक्ता के लिए एस्कॉर्बिक अम्ल तीन मिलीलीटर प्रति किलो शरीर की दर से देना चाहिए और ऑक्सलेट विषाक्ता के लिए पशु को कैल्शियम देना चाहिए.

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