नई दिल्ली. गुजरात के अहमदाबाद से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित छोटे आनंद जिले से अमूल की शुरुआत हुई. यही वजह है कि इस शहर को भारत का मिल्क कैपिटल भी कहा जाता है. अमूल जो कि देश की सबसे मशहूर डेयरी (दुग्धशाला) है. इसकी शुरुआत 1946 में हुई. उस दौरान गुजरात में केवल एक ही डेयरी हुआ करती थी. उसका नाम पोलसन डेयरी था, जिसकी स्थापना 1930 में की गई थी. तब पोलसन डेयरी का क्रेज उच्च श्रेणी के लोगों में ज्यादा था. ये डेयरी आगे चलकर देशी किसानों के शोषण के लिये भी जानी जाने लगी. तभी सरदार पटेल ने कुछ किसानों के साथ इसके खिलाफ नॉन-कॉपरेशन आन्दोलन शुरू कर दिया था. इसके कारण 14 दिसम्बर 1946 में अमूल इंडिया की स्थापना की गई. शुरू में में वह बगैर किसी निश्चित वितरित नेटवर्क के, केवल दूध एवं उसके अन्य उत्पादों की आपूर्ति करती थी. इसकी शुरुआत केवल दो संस्थानों और सिर्फ 247 लीटर दूध के साथ हुई थी.
अमूल है एक बेहतरीन उदाहरण
आंदोलन के दौरान अमूल इंडिया की नींव रखी गई थी. इस वजह से ये किसी सहकारी आन्दोलन की लॉन्ग टर्म में सफलता का एक बेहतरीन उदाहरण बन गई. अमूल्य का अर्थ है, जिसका मूल्य न लगाया जा सके, ने विकासशील देशों में सहकारी उपलब्धि के श्रेष्ठतम उदाहरणों में से एक है. इसी कंपनी को भारत में श्वेत क्रान्ति की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है. जिसके बाद से भारत दुनिया में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला देश बन गया है. अमूल को श्रेय जाता है कि उसने ग्रामीण विकास का एक सम्यक मॉडल प्रस्तुत किया. मौजूदा वक्त में अमूल के प्रमुख दूध, दूध के पाउडर, मक्खन (बटर), घी, चीज, दही, चॉकलेट, श्रीखण्ड, आइस क्रीम, पनीर, गुलाब जामुन, न्यूट्रामूल आदि हैं.
को-आपरेटिव संस्थानों का निर्माण हुआ शुरू
अमूल की जब शुरुआत हुई और कंपनी आगे बढ़ने लगी तो ने इसने कई सारे गांवों में सामूहिक रूप से को-आपरेटिव संस्थानों का निर्माण करना शुरू किया. इन संस्थानों को रोज़ाना दो बार ग्रामीणों से दूध इकट्ठा करना पड्ता था. ग्रामीणों को अमूल दूध की चिकनाई पर भुगतान करता था. पूरी प्रक्रिया में इजाफा करने के लिए तमाम जरूरी कदम उठाए गए थे. को-आपरेटिव संस्थानों में इकट्टा हुए दूध को डिब्बों की मदद से करीबी चिलिंग यूनिट भेज दिया जाता था. कुछ दिनों के लिये इन डिब्बों को वहां रखा जाता और फिर इन्हें नोरोगन के लिये और अन्त में कूलिंग एवं पैकेजिंग के लिये भेजा जाता था. यहां से थोक वितरकों को दे दिया जाता था जो खुदरा विक्रेताओं और फिर अंत में उपभोक्ताओं तक पहुंचता. इस पूरी सप्लाई चेन को डिजाइन करने का श्रेय डॉ. वर्गीज़ एवं और त्रिभुवनदास को जाता है. जिसके बाद 1960 के दशक के अन्त तक अमूल गुजरात में कामयाबी की बुलन्दियों को छू लिया था.
पूरे देश में छा गया अमूल
बात वर्ष 1964 की जब तत्कालिन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को कैटल फीड प्लांट के उदघाटन के लिए आनंद आमंत्रित किया गया था. प्रधानमंत्री को उसी लौटना था लेकिन वो वहीं रुक गए और कोआपरेटिव की सफलता को जानने के बाद इतना प्रभावित हुए कि नई दिल्ली पहुंचने के बाद डॉ. कुरियन से अमूल के प्रतिरुप को पूरे देश में अमल में लाने के लिए कहा. जिसके बाद 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की गई. क्यों तब भारत में दूध की मांग ज्यादा थी और ये करना भी जरूरी था. पूरे देश में ऐसा करने के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत थी. जब वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष 1969 में भारत घूमने आए तो उस वक्त डॉ. कुरियन ने कहा था कि “आप मुझे धन दीजिए और फिर उसके बारे में भूल जाइए. कुछ दिनों के बाद उन्हें लोन मिला और फिर लगभग 0.1 करोड़ कोआपरेटिव एवं 5 लाख दूध उत्पादक और जुड़ गए थे. उन्हीं प्रयासों के चलते अमूल करीब 5 लाख दुग्ध उत्पादकों जो रोज़ाना 1,44,246 डेयरी कोआपरेटिव संस्थानों में दुध की धारा बहाते हैं और भारत विश्व का सबसे बड़ा दुध उत्पादक बन गया.
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