नई दिल्ली. पशुपालन से कैसे किसनों की इनकम बढ़ाई जा सकती है और पशुपालन कैसे किसानों के लिए आय का एक बेहतरीन सोर्स बन सकता है, इसकी एक नजीर उत्तर बिहार के कोसी क्षेत्र में देखने को मिल रही है. जहां नेपाल से आने वाली नदियों में बाढ़ की वजह से किसानों की फसल बर्बाद हो जाती थी, जिससे किसान बेहद ही परेशान रहते थे लेकिन बिहार सरकार की ओर से चलाई गई योजना से यहां के लोगों को फायदा मिला है. साल 2011 में विश्व बैंक वित्तपोषित बिहार कोसी बाढ़ समु्त्थान परियोजना की शुरुआत की गई. वहीं 2016 में इसके दूसरे चरण में बिहार कोसी बेसिन विकास परियोजना बीकेडीपी की शुरुआती गई.
बता दें कि इस परियोजना के तहत पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग बिहार सरकार जनवरी 2018 में कोसी क्षेत्र के सुपौल, अररिया, सहरसा, मधेपुरा और पूर्णिया जिले किसानों को मत्स्य पालन, मुर्गी पालन और बकरी पालन जैसे कारोबार जोड़कर उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है.
क्या है योजना, कैसे मिला फायदा
आपको बता दें कि जब इस परियोजना की जानकारी पूर्णिया जिले के भवानीपुर प्रखंड के मोहम्मद उमर फारूकी को हुई तो तब उन्होंने अपने इलाके में बने फॉर्मल इंटरेस्ट ग्रुप एफआईजी से जुड़कर बकरी पालन की बारीकियां सीखीं. परियोजना से मिली सब्सिडी की मदद से उन्होंने घर में बकरी का शेड बनवाया. आज बकरी पालन से वह हर साल लाखों रुपए कमा रहे हैं. उमर फारुकी ने कहा कि जब से काम शुरू किया है उसके बाद से होली और बकरीद के मौके पर ढाई लाख रुपए आसानी से कमा लेते हैं. बता दें कि कोसी क्षेत्र के सीमांत किसानों को आजीविका के लगातार बेहतर अवसर उपलब्ध कराने वाली बिहार कोसी बेसिन विकास परियोजना के तहत बकरी पालन के लिए 20 बकरियां और एक बकरा वाली यूनिट लगाने पर आने वाले 2 लाख रुपए के खर्च पर 50 फीसदी अनुदान सरकार की ओर से दिया जाता है.
40 हजार रुपए की मिलती है मदद
वहीं बकरियों के चारे और दवाइयां के लिए लाभार्थियों को 40 हजार रुपए की एक मुश्त मदद की जाती है. यह परियोजना सिर्फ सब्सिडी ही नहीं देती बल्कि किसानों को उस व्यवसाय को चलाने में मदद भी करती है. नोडल पदाधिकारी बीकेबीडीपी उमेश कुमार ने बताया कि यहां टेक्निकल सपोर्ट एजेंसी परियोजना से जुड़े किसानों को बकरी पालन की बारीकियां को सिखाती हैं. किसानों को बकरियों की बीमारियों उसके कैसे बचाव आदि की जानकारी दी जाती है. उन्होंने कहा कि जब बकरियां बीमारी हो जाती हैं तो उसके उपचार की व्यवस्था करनी पड़ती है. बकरियां बेचने लायक हो जाती हैं तो उनके लिए मार्केटिंग की व्यवस्था में मदद की जाती है. परियोजना के तहत बकरी पालकों को ट्रेनिंग भी दी जाती है. कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आईसीएआर और केवीके आदि जगह पर आयोजित किए जाते हैं.
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