नई दिल्ली. हर क्षेत्र में अब नई तकनीकी का इस्तेमाल कर लोग अपने काम को आसान करने में लगे हैं. मगर, मछुआरे अभी भी वही पुराने ढर्रे का इस्तेमाल कर मछली पकड़ रहे हैं, जोखिम भरा होने के साथ ही टाइम टेकिंग भी है. कुल मिलाकर कहा जाए तो मछुआरे परंपरागत नावों के सहारे गहरे समुद्र में उतरकर अपनी जान को जोखिम में डालने का काम कर रहे हैं. जान जोखिम में डालने के बावजूद मार्केट की डिमांड के अनुसार मछली पकड़ नहीं पाते, जिससे दो तरह का नुकसान होने हो जाते हैं. एक तो जान खतरे में डाली दूसरा मुनाफा भी नहीं हुआ. अब ऐसे मछुआरों की समस्या का समाधान करने के लिए भारत सरकार आधुनिक तकनीक से तैयार बोट के लिए मछुआरों को स्कीम का लाभ दे रही है. अगर कोई मछुआरा पुरानी बोट को नई बोट से बदलता है तो सरकार उसे कुल कीमत का 60 फीसद हिस्सा दे रही है, जो मछुआरों के लिए बड़ी राहत की बात है.
स्कीम का लाभ उठाकर मछुआरे कमा सकते हैं मुनाफा
मछुआरे परंपरागत नावों के सहारे गहरे समुद्र में उतरकर अपनी जान को जोखिम में डालने का काम कर रहे हैं. जान जोखिम में डालने के बावजूद मार्केट की डिमांड के अनुसार मछली पकड़ नहीं पाते जबकि बाजार की मांग को पूरा करने और अच्छा मुनाफा कमाने के लिए मछलियों की बहुत सारी प्रजाति गहरे समुंद्र में ही पाई जाती हैं, मगर, इन मछलियों को गहरे पानी से कैसे पकड जाए, ये भी एक बड़ा सवाल होता है. मछुआरे परंपरागत नावों के सहारे गहरे समुद्र में उतरकर अपनी जान को जोखिम में डालते हैं. मछुआरों को बिना किसी खतरे के अच्छा मुनाफा कमाने का मौका देने लिए भारत सरकार ने कई स्कीम निकाली है, जिसका लाभ उठाकर मछुआरे मुनाफा कमा सकते हैं. भारत सरकार आधुनिक तकनीक से तैयार बोट के लिए मछुआरों को स्कीम का लाभ दे रही है. अगर कोई मछुआरा पुरानी बोट को नई बोट से बदलता है तो सरकार उसे कुल कीमत का 60 फीसद हिस्सा दे रही है, जो मछुआरों के लिए बड़ी राहत की बात है. इसका एलान भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री डॉक्टर मुरुगन ने किया. उन्होंने कहा कि गहरे समुंद्र में मछली पकड़ने वाली बोट को हाईटेक बनाने के लिए रिसर्च और नए डिजाइन वाली बोट की आवश्यकता है. इसलिए इन बोट का सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखते हुए बनाया जाएगा. बता दें कि भारत सरकार नीली क्रांति और पीएम मत्स्य संपदा स्क्रीम के तहत देश के मछुआरों को कई तरह की स्कीम का लाभ दे रही है. केंद्रीय राज्य मंत्री का कहना है कि मछली पकड़ने वाली बोट को आधुनिक बनाने के लिए केन्द्र सरकार तो मदद कर ही रही है, साथ ही मछुआरों को और मदद देने के लिए लोन सुविधा भी जारी की है.
प्रोसेसिंग यूनिट से लैस हाईटेक बोट की है जरूरत
भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री डॉक्टर मुरुगन का कहना है कि अगर गहरे समुंद्र में मिलने वाली मछलियों की बात करें तो टूना की बाजार में बहुत डिमांड है. इसके रेट भी अचछे मिल जाते हैं. लेकिन टूना को पकड़ने और अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता के मानकों को बनाए रखने के लिए हाईटेक बोट की जरूरत होती है. यही वजह है कि अब मार्केट की मांग को देखते हुए देश में पहली बार ऐसी बोट की जरूरत पड़ रही है जिसमे प्रोसेसिंग यूनिट भी हो. जबकि वर्तमान में मांग के हिसाब से मछुआरों के पास में ऐसी बोट नहीं हैं. इसी कमी को पूरा करने के लिए सरकार इस तरह की योजना लेकर आ रही है, जिसका लाभ मछुआरों को मिल सके. इतना ही नहीं मत्स्य पालन विज्ञान और प्रबंधन, फिश प्रोसेसिंग और बुनियादी ढांचे के साथ मजबूत संस्थागत आधार का उपयोग करना गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की विकास योजनाओं के लिए भी फायदेमंद होगा.
फिश वैल्यू एडेड प्रोडक्ट पर भी हो रहा काम
भारत से मछली का निर्यात लगातार बढ़ता ही जा रही है. कई देशों में तो वहां का मुख्य भोजन ही सी फूड है. इसलिए भारत के सी फूड की बहुत डिमांड रहती है, जिसमें भारतीय झींगा को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है.अब तो मछली से बने आइटम (वैल्यू एडेड प्रोडक्ट) पर भी सरकार की नजर है. दुनिया में मछली से बने आइटम का 189 बिलियन डॉलर का कारोबार है. इसमे भारत की हिस्सेदारी आठ बिलियन डॉलर के करीब की है. लेकिन साल 2030 तक इसे दोगुना करने पर काम चल रहा है. इंडस्ट्री का निशाना 20 फीसद की हिस्सेदारी हासिल करने पर भी है. भारतीय समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीडा) ने इसके लिए प्लान तैयार कर उस पर काम करना भी शुरू कर दिया है. हालांकि इस बाजार में चीन, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों की चुनौती भारत को मिल रही है.
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