नई दिल्ली. सिल्वर कार्प मछली आमतौर पर दक्षिणी पूर्वी एशिया की मछली मानी जाती है और यह पूरे विश्व में उपलब्ध है. हालांकि इस मछली का चीन में उत्पन्न होने का अनुमान लगाया जाता है. प्रति एकड़ में लगभग 2000 सिल्वर कार्प मछलियां पाली जा सकती हैं. यह हर साल 6000 से 9000 किलो उत्पादन देती हैं. उनकी खास बात यह है कि यह तेजी से बढ़ने वाली मछली है. अन्य मछलियों से श्रेष्ठ मानी जाती है. 1 वर्ष में या 3 से 4 किलो की हो जाती हैं. ऐसे में इस मछली को पालकर मत्स्य पालक अच्छी कमाई कर सकते हैं.
क्या है सिल्वर कार्प की पहचान
इसकी पहचान की बात की जाए तो उसके शरीर का रंग सिल्वर और ऊपरी भाग सलेटी रंग का होता है. इसके शरीर पर बहुत छोटे स्केल होते हैं लेकिन सिर पर काम स्केल होते हैं. यह अपना भोजन पानी की ऊपरी सतह से लेती हैं. इनका मुख्य भोजन फाइटोप्लैंकटन है. या छोटे पौधे पेड़ और गले सड़े जालीय पौधे भी खाना पसंद करती हैं. या अन्य कार्प मछलियों से जल्दी परिपक्व हो जाती हैं. भारत में ये मछली मई और जून महीने में अंडे देने के लिए तैयार हो जाती हैं. अपने शरीर के प्रति किलो भार के अनुसार जीरो से 80 1.00 लाख अंडे देती हैं. यह प्रजाति किसी भी प्रकार के मोटर बोर्ड या उसके शोर से परेशान होकर पानी से निकलने के लिए जानी जाती हैं.
क्या है मुख्य भोजन
सामान्य मछली की बनावटी फीड बाजार में उपलब्ध है. या फीड पैलेट के रूप में होती है. गीले पैलेट में, फीड को सख्त बनाने के लिए कार्बोक्सी मिथाइल सैलूलोज़ या जेलेटिन का उपयोग किया जाता है. उसके बाद इसे बारीक पीस लिया जाता है और पेलेट्स में तैयार कर लेते हैं. यह हेल्दी होता है पर इसे लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता. वहीं सूखे पैलेट को लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है. मछली की की विभिन्न नस्लों के उनके आहार में प्रोटीन विभिन्न मात्रा की जरूरत होती. जैसे मरीन श्रृंप को 18.20% कैटफिश को 18.32 प्रतिशत, तिलापिया को 32.38 प्रतिशत और हाइब्रिड ब्रास को 38.42% की आवश्यकता होती है.
बीमारी और इसका इलाज
इन मछलियों में भी बीमारी भी होती है. इसके लक्षण पूंछ और पंखों का गलना होता है. पंखों के कोने पर हल्की सफ़ेद रंग के दिखते हैं. फिर यह पूरे पंखों पर फैल जाते हैं और आखिरी में यह गिर जाते हैं. इलाज की बात की जाए तो कॉपर सल्फेट से इसका इलाज किया जा सकता है. पानी में 5 फीसदी कॉपर सल्फेट डालकर मछली को दो-तीन मिनट के लिए पानी में डुबो देना चाहिए. वहीं इस मछली के गलफड़े भी गल जाते हैं. इस वजह से मछली सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आ जाती है और आखिरी में दम घुट कर मर जाती है. ऐसा होने पर मछलियों को 5-10 मिनट के लिए नमक के घोल में डुबोकर इस बीमारी का इलाज किया जा सकता.
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