नई दिल्ली. गर्मी का आगाज हो गया है. न सिर्फ चिलचिलाती धूप लोगों को परेशान कर रही है बल्कि लू से भी लोग परेशान हैं. यही नहीं इंसानों के साथ-साथ मवेशी भी गर्मी से परेशान हैं. जिसका असर भी दिखने लगा है. तमिलनाडु में कई दिनों में भीषण गर्मी की वजह से मवेशी इतना ज्यादा तनाव में आ गए हैं कि दूध उत्पादन ही कम हो गया है. गर्मी का असर भैंस और क्रॉस ब्रीड दुधारू गायों के दूध पर ज्यादा पड़ा है. कहा जा रहा है एविन द्वारा हर दिन खरीदे जाने वाले दूध की मात्रा में 5 लीटर लाख लीटर तक की कमी दर्ज की गई है. मार्च में जहां 30 लाख से 31 लख लीटर की खरीदारी हुई थी और वहीं अप्रैल में ये गिरकर 26 लीटर पर सिमट गया है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दूध की खरीद में गिरावट पिछले साल की समान्य अवधि की तुलना में केवल एक लाख लीटर ज्यादा है. पिछले साल अप्रैल महीने में दूध उत्पादन गिरकर 26 लाख प्रतिदिन हो गया था. कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में स्थिति और खराब हो सकती है. ऐसे में दूध उद्योग सूत्रों का कहना है की क्रीम और दूध की मिठाइयों के बिजनेस पर भी असर इससे पड़ेगा.
हमारे पर दूध की कमी नहीं
एविन के प्रबंध निदेशक इस विनीत का कहना है कि गर्मी की लहर के कारण पशुओं की दूध देने की क्षमता कम हो जाती है. धर्मपुरी और तिरुचि जिले में तापमान 2 से 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है. जिसके कारण दूध की खरीद में मामूली गिरावट आई है. उन्होंने कहा कि लेकिन हमारे कार्ड धारकों और खुदरा उपभोक्ताओं को दूध की आपूर्ति प्रभावित नहीं हुई है. हमने गिरावट की भरपाई के लिए पहले से ही तैयारी कर ली थी. हमारे पास पहले से ही पाउडर दूध पर पर्याप्त भंडार है.
देसी दूध का व्यवसायिक इस्तेमाल नहीं हो पाता
एविन और निजि डेयरी समेत दूध उद्योग के खिलाड़ी दूध उत्पादन के लिए जर्सी और होल्सटीन एचएफ जैसी गायों के साथ-साथ भैंस जो विदेशी नस्लों की है उसपर बहुत ज्यादा निर्भर करते हैं. इसके अलावा दूध जर्सी और एचएफ प्रकार की संकर नस्लों से प्राप्त किया जाता है. देसी नस्लों द्वारा उत्पादित दूध का उत्पादन सामग्री के कारण इस व्यावसायिक आपूर्ति के लिए उपयोग नहीं माना जाता है.
किसानों पर पड़ा रहा बोझ
तमिलनाडु मिल्क की प्रोड्यूसर्स वेलफेयर एसोसिएशन के एमजी राजेंद्ररन का कहना है कि राज्य भर में निजी डेयरियों के उत्पादन में मामूली गिरावट आई है. तीन दशक पहले डेयरी किसानों अविन और पशुपालन विभाग दोनों से पूरे साल पशु चिकित्सा सहायता मिलती थी. लेकिन अब इन दोनों को आउटसोर्स पर दे दिया गया है. पशुपालन क्लीनिक में पर्याप्त संख्या में पशु चिकित्सक नहीं है. जिससे किसानों को पशुओं के इलाज के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है.
Leave a comment