नई दिल्ली. भेड़ पालन पशुपालन की ही एक शाखा है. इसका पालन अच्छी नस्लों की देसी विदेशी और शंकर प्रजातियों का चुनाव करके किया जाता है. भेड़ का 12 से 48 घंटे का रतिकाल होता है. सुबह 7 से 10 बजे तक शाम से 3 बजे भेड़ों को चाराना चाहिए. दोपहर में पहले आराम देना बेहतर होता है. भेड़ के बच्चे को पैदा होने के तुरंत बाद फेनसा पिलाना भी बेहतर माना जाता है. भेड़ पालने से किसानों को दो तरह से फायदा होता है. एक तो वह मीट बेचकर इससे कमाई करते हैं. साथ ही ऊन से भी अच्छी खासी कमाई होती है. जिन किसानों के पास काम खेत है. वह भेड़ पालन करके अपनी आय को दोगना कर सकते हैं.
भेड़ के जीवन की बात की जाए तो भेड़ जुगाली करने वाला छोडा पशु है. यह प्याज पत्ता खाता है. जिससे ऊन व मांस बनता है. सामान्यत भारी वर्षा भेड़ों के लिए अच्छी नहीं होती है. खुश्क व कम वर्षा के साथ ठंडी जलवायु भेड़ों को स्वस्थ रखने में सहायक होती है. भेड़े कीचड़ आदि पसन्द नहीं करती. भेड़ों में अपने मालिक के पीछे 2 चलने की स्वाभाविक आदत होती है और भेड़ पालक खेतों और चारागाहों में उनको इकट्ठा करने में उनकी इस आदत का लाभ उठाते हैं. भेड़ की सामान्य आयु 10-12 साल समझी जाती है, परन्तु मेढ़े या भेड़े किस आयु तक उपयोगी रहती है यह उनकी नस्ल और हाट की परिस्थितियों पर निर्भर करता है.
भेड़ पालन से लाभ उठाने के लिए ध्यान देने योग्य बातें
- यदि भेड़ पालन से लाभ उठाना हो तो भेड़ पालक को आवश्यकता से अधिक ऐसे सब मेढे व भेड़े बेच देने चाहिए जो नियमित रूप से बच्चे नहीं देती या जिनका ऊन उत्पादन कम हो गया है.
- 30-40 भेड़ों को प्रजनन के लिए एक मेढ़ा काफी है. इसलिए साल में पैदा हुए नर मेमनों मे से प्रजनन के लिए आवश्यक एक मेमने को रखने के बाद बाकी सभी मेमनों को मांस के लिए बेच देना चाहिए.
- नर मेमनों को उस समय बेचना फायदे मंद होता है जब उन्होनें मां का दूध पीना छोड़ दिया हो और वे पूरे बढ़ चुके हों, परन्तु उनकी आयु प्रजनन योग्य न हो.
4 यह बात विशेष रूप से याद रखनी चाहिए कि भेड़ों को ऊन व मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है. इसलिए एक अच्छा भेड़ पालक इस बात का ध्यान रखेगा कि भेड़े अच्छी पैदा हो और उन्हें बेकार मरने न दे कर, मांस के रूप में काम लाया जाए.
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