नई दिल्ली. किसानों का रुझान मछली पालन की ओर भी तेजी के साथ बढ़ रहा है और मछली पालन करके वह अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. मछलियों को सबसे ज्यादा नुकसान बीमारी की वजह से होता है. यदि एक बार मछली को बीमारी लग गई तो इससे मछली पालन करने वाले किसान को बड़ा नुकसान हो सकता है. इसलिए सबसे जरूरी है कि मछली को किसी तरह की बीमारी न लगे दें. यदि लग गई है तो उसका सही समय पर इलाज होना भी जरूरी है.
वैसे तो मछलियों में कई तरह के रोग होते हैं, जिसमें जीवाणु जनित रोग भी होता है. जिसे बैक्टीरियल डिसीज भी कहा जाता है. इसमें 6 किस्म की बीमारी होती है. आइए इस आर्टिकल में आपको इन बीमारियों के सिम्पटम्स, इलाज आदि के बारे में जानकारी देते हैं. अगर इस आर्टिकल को पूरा पढ़ लिया तो मछली की बैक्टीरिया बीमारी के बारे में अच्छी खासी जानकारी हो जाएगी.
कॉलमनेरिस बीमारी
इस बीमारी के लक्षण की बात की जाए तो फ्लेक्सीबेक्टर कॉलमनेरिस बैक्टेरिया के संक्रमण से होता है. पहले शरीर के बाहरी हिस्सों पर गलफड़ों में जख्म होना शुरू हो जाते हैं. फिर संक्रमण स्किन में पहुंचकर जख्म बना देते हैं. संक्रमित भाग में पोटेशियम परमेगनेट का लेप लगाएं. 1—2 पीपीएम कॉपर सल्फेट का घोल पोखरी में डालें. इससे इसका उपचार हो जाएगा.
बैक्टीरियल हेमारेजिक सेफ्टिसीमिया
यह मछलियों में एरोमोनॉस हाइड्रोफिला व स्युडोमोनास फ्लुरिसेन्स नाम के बैक्टेरिया की वजह से होती है. इसमें शरीर पर फोड़े तथा फैलाव आता है शरीर पर फूल जख्म हो जाते हैं. जो त्वचा व मांसपेशियों में हुए क्षय को दर्शाता है. पंखों के आधार पर जख्म दिखाई देता है. पोखरे में दो से तीन पीसीएस पोटेशियम परमेगनेट का घोल डालना चाहिए. टेरामाइसिन को खाने के साथ 65 से 80 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम भार से 10 दिन तक लगातार देने से बीमारी से राहत मिलती है.
ड्रॉप्सी बीमारी
यह उन पोखरों में होती है जहां पर्याप्त भोजन की कमी होती है. इसमें मछली का धड़ उसके सिर के अनुपात में काफी पतला हो जाता है और वह दुबली हो जाती है. मछली जब हाइड्रोफिला नाम के जीवाणु के संपर्क में आ जाती है तो या रोग पनप जाता है. प्रमुख लक्षण में शल्कों का बहुत अधिक मात्रा में गिरना तथा पेट में भर जाता है. मछलियों को पर्याप्त खाना देना और पानी की गुणवत्ता बनाए रखना. पोखरे में 15 दिन के अंतराल पर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से चूना डालना चाहिए.
एडवर्डसिलोसिस
इस सड़कर गल जाने वाला रोग भी कहते हैं. या एडवर्ड टारडा नाम के बैक्टेरिया से होता है. शुरू से मछली इसमें दुबली हो जाती है. शल्क गिरने लगते हैं. फिर पेषियों में गैस कैसे फोड़े बन जाते हैं और मछली से बदबू भी आने लगती है. इसके इलाज के लिए पानी की गुणवत्ता की जांच करना चाहिए. 0.04 पीपीएम आयोडीन घोल में 2 घंटे के लिए मछली को रखने से बीमारी ठीक हो जाती है.
वाइब्रियोसिस
इस बीमारी बिब्रिया प्रजाति के जीवाणु से होती है. इसमें मछली खाना नहीं खाती है. उसका रंग काला पड़ जाता है. मछली अचानक मरने लगती है. या मछली की आंखों को ज्यादा प्रभावित करता है. सूजन के कारण आंख बाहर निकल आती है. सफेद धब्बे पड़ जाते हैं. अगर इसका इलाज करना है तो आक्सीटेट्रासाईक्लिन तथा सल्फोनामाइड को 8 से 12 ग्राम प्रति किलोग्राम भोजन के साथ मिलकर देना चाहिए.
फिनरॉंट एंव टैलरॉंट
इस रोग में ऐरोमोनॉंस, फ्लुओरेसेंस, स्युडोमोनांस, फ्लुओरेसेंस और स्युडोमोनांस नाम के जीवाणु से होता है. इसमें मछली के पक्ष पक्ष और पूंछ सड़कर गिरने लगते हैं. बाद में मछलियां मर जाती हैं. इसमें पानी साफ रखकर और एमेकिवल दवा 10 मिली प्रति 100 लीटर पानी मिलाकर संक्रमित मछली को 24 घंटे तक घोल में रखना चाहिए.
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