नई दिल्ली. पशुपालन में सबसे बड़ी परेशानी पशुओं को बीमारी की वजह से होती है. क्योंकि बीमारी ने अगर गंभीर रूप ले लिया तो पशु की मौत ही हो जाती है. इसके चलते पशुपालक को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए पशुओं को बीमारी से बचाना बहुत ही जरूरी होता है, क्योंकि पशुओं को बीमारी से नहीं बचाया गया तो फिर दिक्कतें होना लाजिमी हैं. इससे पशुपालक पशु से मुनाफा भी नहीं कमा सकेंगे और जमापूंजी भी खर्च हो जाएगी.
बात की जाए बकरियों के पालन की तो बकरियों में भी अन्य पशुओं की तरह बीमारी होती है. बकरियों में ब्रुसेलोसिस, ब्लैक लेग/ब्लैक क्वार्टर, ब्लूटौंज और बोटुलिज़्म ऐसी बीमारियां हैं जो काफी नुकसान पहुंचती हैं. इसलिए बकरी पालकों को इन बीमारियों के लक्षण और इसके खतरों के बारे में पता होना चाहिए. अगर बकरियों को बीमारी से बचा लिया जाए तो ये पशु पालक के लिए मनी बैंक बन सकती है. आइए बकरियों की इन चार बीमारियों के बारे में यहां जानते हैं.
ब्रुसेलोसिस (ब्रुसेला एबॉर्टस)
बर्साइटिस (हाइग्रोमा), नर की यौन इच्छा कम हो जाती है. संक्रमित पशु जिंदगी भर ब्रुसेलोसिस से पीड़ित रह सकता है. मुरझाए हुए जानवरों के फिस्टुला और पोल-बुराई का विकास, स्ट्रेनम और भ्रूण में फोड़ा हो जाता है. वहीं सिर और गर्दन पर घाव हो जाते हैं. सबसे बड़ी दिक्कत गर्भपात की होती है. नर में ऑर्काइटिस और बकरियों तीसरी तिमाही में गर्भपात सबसे आम बात है.
ब्लैक लेग/ब्लैक क्वार्टर
इस बीमारी में फोकल गैंग्रीनस, वातस्फीति मायोसिटिस, भूख में कमी, उच्च मृत्यु दर की संभावना सबसे ज्यादा रहती है. वहीं जांघ के ऊपर क्रेपिटस सूजन, चीरा लगाने पर गहरे भूरे रंग का तरल पदार्थ निकलता है. वहीं बीमारी में बुखार (106-108*एफ) तक हो सकता है. पैर को प्रभावित करके लंगड़ापन ला देता है. कूल्हे के ऊपर क्रेपिटिंग सूजन, पीठ पर क्रेपिटस सूजन, कंधे पर रेंगने वाली सूजन आदि होती है.
ब्लूटौंज
इस बीमारी में बकरी के शरीर का तापमान का अधिक बढ़ जाता है. वहीं लार निकलना, लार का गिरना, थूथन सूखना और जला हुआ दिखना आदि सिम्पटम्पस दिखाई हैं. इसके अलावा गर्दन और पीठ का फटना आम शिकायत है. जुबान का सियानोटिक और नीला दिखना, गर्भपात, थन में सूजन और थनों में घाव, होंठ, जीभ और जबड़े में सूजन, बुखार , नाक से स्राव, लंगड़ापन भी हो जाता है.
Leave a comment