Home पशुपालन Animal News: शीतलहर से इन जानवरों को बचाना होता है जरूरी, लापरवाही से हो सकता है बड़ा नुकसान
पशुपालन

Animal News: शीतलहर से इन जानवरों को बचाना होता है जरूरी, लापरवाही से हो सकता है बड़ा नुकसान

Animal husbandry, heat, temperature, severe heat, cow shed, UP government, ponds, dried up ponds,
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पशुपालन में ठंड केे दौरान शीतलहर से पशुओं को बेहद ही परेशानी होती है. इस दौरान पशुओं को शीतलहर से बचाने की जरूरत होती है. ऐसा न करने पर उनका उत्पादन कम हो जाता है. हो सकता है कि इससे पशु बीमार हो जाएं और उनकी मौत भी हो जाए. इसलिए शीतलहर से जानवरों को बचाने के लिए हर जरूरी उपाय को करना चाहिए. एक्सपर्ट के मुताबिक शीतलहर तब होती है, जब किसी जगह का न्यूनतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है. खासतौर पर उत्तर भारत मुख्य रूप से जनवरी के महीने के दौरान शीतलहर से जानवरों को बेहद ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

वहीं हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड) और पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में फैले मैदानी इलाके शीतलहर से प्रभावित होते हैं. शीतलहर से होने वाला नुकसान, तापमान, आर्द्रता के स्तर और ठंडी हवाओं की गति पर निर्भर करता है.

ठंड से बचाव का इंतजाम करना है जरूरी
शीतलहर से निपटने के लिए स्थानीय प्रशासन की ओर से दी गईं चेतावनियां पर नजर बनाए रखना चाहिए. विभाग की ओर से जारी एडवाइजरी जानवरों के नुकसान और आर्थिक प्रभावों को कम करने में मदद करती है. जबकि शीतलहर से जानवरों को बचाने के लिए जरूर उपाय करने का वक्त पशुपालकों को मिल जाता है. एडवाइजरी जारी करने का ये भी मतलब होता है कि जानवरों के शेड में जरूरी काम कर लिय जाएं. पोषण आहार और चारे की उपलब्धता भी कर ली जाए वहीं पशुपालकों को जरूरी मदद दी जाए. एडवाइजरी में ये बताया जाता है कि डेयरी फार्म में ठंड से बचाव के क्या-क्या उपाय किये जाएं. जानवरों को ऐसा फूड खिलाएं जो ठंड से बचाए.

इस तरह के जानवरों पर जरूर दें ध्यान
जानकारी के लिए बता दें कि शीतलहर पशुधन और वन्यजीवों की मृत्यु और बीमारी का कारण बन सकती है. ठंड के लिए सभी जानवरों के लिए अधिक कैलोरी का सेवन जरूरी होता है और यदि शीतलहर भारी और लगातार बर्फ के साथ होती है, तो चरने वाले जानवर जरूरी भोजन तक पहुंचने में नाकामयाब हो सकते हैं. इसके चलते डेयरी जानवर हाइपोथर्मिया या भुखमरी के शिकार होकर मर सकते हैं. इसलिए खासतौर पर नवजात और युवा जानवर, सांस की बीमारी के इतिहास वाले बीमार जानवर, स्तनपान कराने वाले जानवर और कमजोर जानवरों का ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

अरुणाचल प्रदेश में, ब्रोक्पा बड़ी मोनपा जनजाति की एक उप-जनजाति है, जो पूर्वी हिमालयी क्षेत्र के पश्चिमी कामेंग और तवांग जिलों में निवास करती है.
पशुपालन

Arunachali Yak: अरुणाचल प्रदेश की पहचान है अरुणाचली याक, जानिए इसकी खासियत

फाइबर के माध्यम से आश्रय और कपड़े प्रदान करते हैं और कठिन...

Why did NDRI say, separate AI department is needed for research and development activities
पशुपालन

Indian Dairy: NDRI से देश को मिलेंगी 98 फीमेल डेयरी साइंटिस्ट और एक्सपर्ट, 22 को मिलेगी डिग्री

जिन साइंटिस्ट को मेडल आदि दिया जाना है उन्हें भी सूचित किया...

animal husbandry
पशुपालन

Animal Husbandry: अच्छा बछड़ा या बछिया चाहिए तो आजमाए ये टिप्स, आमदनी होगी डबल

भैंस के बच्चे को तीन माह तक रोजाना उसकी मां का दूध...

livestock
पशुपालन

Animal News: गर्मी में डेयरी पशुओं को लू से बचाने के लिए पढ़ें टिप्स

पशुओं को लू से बचाने के लिए ठंडी छाया के साथ पोषण...