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Cow: गाय के वेस्ट से निकलने वाली मिथेन पर्यावरण के लिए है खतरनाक, जानें क्या है इसे रोकने का उपाय

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. भारत में गाय आस्था का विषय है. गाय को लोग पूजते हैं और बड़ी संख्या में लोग इसे पालते भी हैं. वहीं गाय डेयरी व्यवसाय के लिए भी परफेक्ट एनिमल है. जिसके दूध से देश के बहुत से लघु और सीमांत किसानों के घर चलते हैं. जहां गाय पालने के तमाम फायदे हैं तो वहीं एक नुकसान भी है. शायद कम लोगों को इसकी जानकारी से जो वेस्ट निकलता है, उसमें मि​थेन गैस पाई जाती है. इससे न सिर्फ पशुओं को नुकसान होता है, बल्कि ये पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है. यही वजह है कि गाय के वेस्ट से निकलने वाली मिथेन गैस को कम करने की कोशिशों पर काम चल रहा है.

आपको बता दें कि कॉलेज आफ एग्रीकल्चर एंड लाइफ साइंसेज में डेयरी कैटल बायोलॉजी एसोसिएट प्रोफेसर जोसेफ मैकफेडेन का कहना है कि गायों और भैंस का पाचन तंत्र एंटरिक मिथेन का उत्पादन और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक में सोर्स है. उन्होंने बताया कि पशु खाने के बाद जुगाली करते हैं. गाय और भैंस जैसे उनके मल से जो मीथेन गैस निकलती है उसमें प्रदूषण की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जो वातावरण के लिए कतई उचित नहीं है.

इस वजह होता है निकलती है मिथेन
अगर भारत की बात की जाए तो यहां लगभग 300 मिलियन से ज्यादा मवेशी हैं, जो दूध उत्पादन करते हैं. इसमें ज्यादातर पशु जुगाली करने वाले हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि जो जुगाली से मीथेन का कनेक्शन है. ऐसे में दावा किया जा रहा है कि प्रदूषण के स्तर को यह बढ़ता भी है. एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि पशु जो भोजन करते हैं उसको पचाने के लिए जुगली करते हैं. ताकि खाना सही से पच सके. ऐसे में जुगली की प्रक्रिया के दौरान खाना ठीक से पच जाता है और जब इसके बाद गोबर निकलता है तो उसमें एंटरिक मीथेन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. जिस वजह से प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है.

पशुओं को भी हो रहा है नुकसान
गौरतलब है कि एनडीडीबी ने एक प्रयोगशाला की स्थापना की है. जिसमें क्षेत्रीय परिस्थितियों के मुताबिक दुधारू पशुओं से मीथेन उत्सर्जन मापा जा सके. जानवरों की तमाम श्रेणियां में संतुलित आहार खिलाने से पहले उसके बाद मीथेन उत्सर्जन को मापा जाता है. जानकारी इकट्ठा करने के लिए क्षेत्र परीक्षण किए जाते हैं. अब तक रिसर्च से पता चला है कि संतुलित आहार खिलाने से गाय और भैंसों की प्रति किलोग्राम दूध उत्पादन पर मीथेन का उत्सर्जन 10 से 15 फीसदी कम किया जा सकता है. ऐसे में एक्सपर्ट कहते हैं कि पर्यावरण को बचाना है तो गायों और भैंसों को संतुलित आहार खिलाया जाना चाहिए जो आसानी से पच जाए. बता दें कि जुगाली करने वाले पशु खान-पान से मिली ऊर्जा का चार से 12 फीसदी हिस्सा मीथेन के रूप में गवा देते हैं. जो केवल पर्यावरण के लिए नहीं बल्कि उनके लिए भी नुकसानदेह है. जबकि संतुलित आहार खिलाने इसको रोका जा सकता है.

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