नई दिल्ली. जब भी पोल्ट्री फार्मिंग की बात आती है तो लोगों के जहन में मुर्गी पालन ही सबसे पहले आता है लेकिन कम ही लोगों को पता है कि मुर्गी पालन से भी ज्यादा कमाई का जरिया तीतर, बटेर और पतख पालन हो सकता है. जापनी बटेर एक मुख्य पक्षी है. इसका पालन कर मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है. अब एक और पक्षी का नाम सामने आ रहा है, जिसका नाम गिनी फाउल सामने आ रहा है. इसे पालने में कम खर्च में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. अफ्रीका और यूरोप में पाई जाने वाली इस प्रजाति को अपने देश में पाला जा रहा है क्योंकि भारतीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं. इसीलिए इसे बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिग के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.
गिनिया फाउल को कम लगती है बीमारी
उत्तर प्रदेश स्थित केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान बरेली के एक्स्पर्ट के अनुसार गिनिया फाउल या तीतर पक्षी में लेयर और ब्रॉयलर मुर्गियों की अपेक्षा बीमारी कम लगती है. इसमें टीकाकरण की भी बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती. गिनिया फाउल को पालने में औरों की अपेक्षा ज्यादा फायदेमंद माना जाता है. भारत में गिनिया फाउल की तीन प्रजातियों को व्यवसायिक रूप से पाला जाता हैं, इनमें कादम्बरी, चिताम्बरी और श्वेताम्बरी प्रमुख हैं. यह सफेद, भूरे और काले रंग के होते हैं.
कम लागत में ज्यादा लाभ
गिनिया फाउल में सबसे अच्छी बात ये है कि इनमें बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है. दवाइयों पर खर्च न के बराबर होता है. गिनिया फाउल किसी भी जलवायु को खुद के लिए अनुकूल बना लेता है. इसे पालने के लिए महंगे शेड की जरूरत नहीं होती. इसके भोजन में मुख्य रूप दाने और अनाज होते हैं. ये अपना भोजन हरे-भरे घास के मैदान से ले लेता है. ये खुद को झुंड में रहना पसंद नही करते. जब पेट भर जाता है तो शाम आवास में ले आते हैं, गिनिया फाउल को दिन में एक बार ही दाना देने की जरूरत पड़ती है. इस प्रकार से तीतर कम खर्च में ही तैयार हो जाते हैं.
मांस-अंडे दोनों के लिए करते हैं पालन
गिनिया फाउल पक्षी को मांस और अंडे दोनों के लिए पाला जाता है.
इसका अंडे और मांस की खूब डिमांड होती है. इनके अंडों को लंबे समय तक रखा जा सकता है. इस पक्षी के मांस में विटामिन की मात्रा अधिक तथा कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी कम होती है. इसका मांस खाने वालों के लिए बेहतरीन पौष्टिकता से भरा होता है.
बटेर के मांस की भी खूब है डिमांड
एक्सपर्ट कहते हैं कि कुक्कुट के अंडे और मांस प्रोटीन के लिए सबसे अच्छे स्रोत हैं. यह कुपोषण को भी दूर करने में मददगार साबित होते हैं. देखा जाता है कि ज्यादातर लोग मुर्गी और बत्तख के अंडे का सेवन करते हैं लेकिन बहुत से लोग बटेर के भी शौकीन हैं. इस वजह से बटेर की मांग तेजी के साथ बढ़ रही है.
पौष्टिकता से भरपूर है
बटेर के शिकार की वजह से इसकी संख्या में भी काफी कमी आई है. ऐसा माना जाता है कि यह पौष्टिकता से भरपूर है. इसीलिए उनके पालन का भी चलन तेजी के साथ बढ़ा है. एक्सपर्ट कहते हैं की बटेर फार्मिंग विश्व के 56 देश में की जाती है. बटेर पालन में सबसे खास बात यह है कि इसे किसी भी मौसम में आसानी से पाला जा सकता है. यह आठ डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 45 डिग्री सेंटीग्रेड में बहुत ही आसानी के साथ रह सकती है. सबसे अच्छी बात इस पक्षी के साथ यह है कि इसमें जल्दी बीमारी नहीं लगती है. इनका न ही वैक्सीनेशन कराना पड़ता है ना इन्हें एंटीबायोटिक दवाई देनी पड़ती है.
इम्यूनिटी बहुत अच्छी है
एक्सपर्ट कहते हैं कि जापानी बटेर की अहमियत तब बहुत ज्यादा बढ़ गई जब नासा की एक अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा बनी थी. इस पक्षी को नासा ने इसलिए चुना था कि क्योंकि 17 दिनों में इसका बच्चा बाहर आ जाता है. तमाम तरह की स्टडी पर बटेर खरी उतरी. भारत में बटेर पालन की बात की जाए तो 1974 में इसकी शुरुआत हुई थी. तब अमेरिका से बटेर को लाया गया था और बरेली के इज्जतनगर स्थित केंद्रीय पक्षी अनुसंधान केंद्र में रखी गई. उसके बाद यहां रिसर्च हुई और किसानों को इसके पालने के तरीके के बारे में बताया गया. बटेर पालन अब व्यवसाय का रूप ले चुका है.
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