नई दिल्ली. ग्रामीण इलाकों में पोल्ट्री कुपोषित और हॉस्टिल इंवायरमेंट में पाले जाते हैं. इसलिए ग्रामीण कुक्कुट नस्ल के विकास के समय विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि इन नस्लों में रोग रोधक क्षमता हो और कम से कम खाद्य पदार्थों पर भी जीवित रह सके. ग्रामीण मुर्गीयों में आमतौर पर रानीखेत, मुर्गी चेचक एवम् इंफेक्सीअस बर्सल रोग, कॉलिबेसिलोसिस एवम् कॉकसिडिओसिस रोग की समस्या पायी जाती है. जिनकी रोकथाम जरूरी टीकाकरण के द्वारा किया जाता है. ताकि रोग से बचाया जा सके.
वहीं बाहरी और आंतरिक परजीवि की रोकथाम भी उचित समय पर किया जाना भी ज़रूरी है. हमारे देश की जलवायु आमतौर गर्म है. इसलिए गर्मी के दबाव का प्रबंधन भी ज़रूरी है. अगर ऐसा न किया जाए तो प्रोडक्शन पर असर पड़ेगा. मुर्गे-मुर्गियों के अंडे और मीट उत्पादन पर इसका असर दिखाई देता है.
रानीखेत बीमारी
रानीखेत रोग एक छुआछूत विषाणु रोग है, जो पूरी दुनिया में फैला हुआ है. इस रोग की पहचान की बात की जाए तो तेज गति से दम फूलना, लंगड़ापन, स्वशन नली का फूलना एवम् जाम होना, रक्त का बहने लगता है. वहीं अचानक बड़ी संख्या में मुर्गीयों की मौत होने लग जाती है. बीमारी के इलाज और रोकथाम की बात की जाए तो इसकी रोकथाम मात्र उचित टीटाकरण, जैविक सुरक्षा एवम् प्रबंधन के सर्मेकित प्रयास से ही समभव है. वहीं टीकाकरण के लिए लेनटोजेनीक (लासोटा, एफ, बी1) एवम् मीसोजेनीक (एच, आर 2 बी, मुक्तेश्वर) विषाणु स्ट्रैस का प्रयोग शरीर में बेहतर रोग रोधक क्षमता उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है. टीकाकरण सातवें दिन, अट्ठाईसवें दिन एवम् 6 सप्ताह पर किया जाता है.
इंफेक्सीअस बर्सल (गमबोरो) रोग
यह एक छुआछूत विषाणु रोग है, जो छोटे आयु के चुज़े को संक्रमित करता है, यह विश्वभर में फैला है. यह रोग मुख्य तौर पर बर्सा अंग को प्रभावित करता है जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता के उत्पादन के लिए उत्तरदायी होता है. अतः इस रोग में कुक्कुटों कि रोग रोधक क्षमता कम हो जाती है. मुख्यतः 3-6 सप्ताह आयु वर्ग के चुजों में इस रोग का प्रहार होता है. अपने या दूसरे कुक्कुटों के भेन्ट पर चोंच मारना, दस्त (व्हाईट डाईरिया) लगना, भेन्ट के आसपास के पंख का गंदा दिखना, भूख कम लगना, कमज़ोर दिखना एवम् 30-40 प्रतिशत कुक्कुटों का मरना इसकी पहचान है.
किस तरह करें इलाज
रोग का इलाज और रोकथाम की बात की जाए तो इस रोग का कोई इलाज़ नहीं है लेकिन सफाई एवम् स्वछता के औषधिरा द्रुत गति से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है. मृत कुक्कुट एवम् फार्म के कूड़े को आग में दहन के द्वारा निष्पादित करना चाहिए. मुर्गी घर एवम् मुर्गी पालन में इस्तेमाल किए गए ऊपकरण को डिसइंफेक्टेंट एवम् फ्यूमीगेशन के द्वारा साफ सफाई करनी चाहिए.
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