नई दिल्ली. मछली पालन करना चाहते हैं या फिर कर रहे हैं तो तालाब की मिट्टी का मैनेजमेंट करना आना चाहिए. तालाब की मिट्टटी ऐसी होनी चाहिए जिससे, मछलियों को ग्रोथ करने में आसानी हो और मछलियां हेल्दी रहें. इससे उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत न आने पाए. मछली की हेल्थ के लिए फिश एक्सपर्ट तालाब में चूने के इस्तेमाल की सलाह देते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि इससे मछलियों को बीमारी से बचाया जा सकता है. वहीं पानी के इंफेक्शन को करने के लिए ब्लीचिंग पाउडर का भी इस्तेमाल किया जाता है. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि दोनों चीजें मछली पालन में अहम हैं.
एक्सपर्ट के मुताबिक चूना का इस्तेमाल बहुत अहम है. मछली पालन में चूने की उपयोगिता सबसे ज्यादा है और चूने का पर्याप्त मात्रा में इस्तेमाल से मछली को सभी रोगों को दूर रखा जा सकता है.
चूने का है ये फायदा
चूने के प्रयोग की कई उपयोगिता है. इसके उपयोग से ज्यादतर जर्म परजीवी मारे जाते हैं. तालाब के कार्बनिक पदार्थों को ये तोड़ देता है. जिससे तालाब की उत्पादकता बढ़ जाती है. तालाब के जल में घुले गंदगी को तली में स्थिर करने में यह मददगार है. तालाब में जहरीली गैस की मात्रा को कम करता है. तालाब में कार्बनिक पदार्थों के तोड़ने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत को घटाकर तालाब में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है. पानी की पारदर्शिता को बढ़ाता है जिससे तालाब में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बढ़ जाती है तथा तालाब में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है.
ब्लीचिंग पाउडर क्यों डाला जाता है
ब्लीचिंग पाउडर के इस्तेमाल मिट्टी, पानी और जाल के डिसइंफेक्शन के लिए किया जाता है. तालाब के पानी में नील हरित शैवाल, फंफूदी, जीवाणु, विषाणुओं तथा परजीवियों के नियंत्रण के लिए किया जाता है लेकिन इसके इस्तेमाल से पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि इसका असर अधिक पीएच तथा कम तापमान पर कम भी होता है. इसका इस्तेमाल बीजों के संचयन से पहले करना चाहिए तथा इसके जहर को सोडियम थायोसल्फेट के प्रयोग से कम किया जा सकता है. इसके लिए प्रत्येक 1 पीपीएम क्लोरीन की मात्रा पर 7 पीपीएम सोडियम थायोसल्फेट का उपयोग किया जा सकता है.
जहरीली गैस का असर होता है कम
जियोलाईट का इस्तेमाल तालाब में जहरीली गैसों के असर को कम करने के लिए किया जाता है. यह तालाब में उपस्थित नाइट्रोजन को अवशोषित कर तालाब के जल को स्वच्छ बनाने में सहायक है. सिफैलोस्ट्रेस परिवहन के समय मछलियों में होने वाली तनाव एवं बीमारियों से बचाव के लिए उपयोग में लाया जाता है. सिफैक्स से मछलियों में हो रहे घाव तथा जख्म के ईलाज के लिए सिफैक्स का उपयोग 2 ली० प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए.
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