नई दिल्ली. गाय भैंस का जो अभी नवजात बच्चा है वह कल दुधारू पशु भी बन जाएगा. किसी भी डेयरी पशु की सफलता इस पर निर्भर करती है कि पशुओं का स्वास्थ्य कैसा है. ज्यादातर डेयरी फार्म में नवजात बच्चों की मृत्यु दर 30 से 35% तक होती है, जो कि एक चिंता का विषय है. नवजात पशुओं की अधिक मृत्यु दर की वजह से दुग्ध उत्पादकता में कमी आ जाती है. जिसकी वजह से किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ जाता है. डेयरी फार्म से प्रर्याप्त लाभ पाने के लिए बछड़े और बछड़ियों के मृत्यु दर की कमी लाना बहुत जरूरी है. यदि बछड़े और बछड़ियों का स्वास्थ्य अच्छा है तो हम बेहतरीन नस्ल के सांड और गाय कम समय में तैयार कर सकते हैं और ज्यादा फायदा भी उठा सकते हैं.
जन्म से पहले ही करें तैयारी
नवजात पशु प्रबंधन बछड़े के जन्म से पहले ही शुरू हो जाता है, जब वह मां के गर्भ में होते हैं. एक स्वस्थ्य गाय या भैंस ही एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दे सकती है. इसलिए जो पशु गाभिन हो जाए उसकी देखभाल अच्छी तरह से करना चाहिए. जिन पशुओं के बच्चा देने का समय नजदीक हो तो उन्हें दूसरे पशुओं से अलग रख देना चाहिए. ऐसा 10 से 15 दिन पहले कर देना चाहिए. ताकि अन्य पशु गाभिन पशुओं को नुकसान न पहुंच सके. जिस स्थान पर गाभिन पशु को रखा जाए वह पहले से साफ सुथरा और कीटाणु रहित और हवादार वह रोशनी युक्त रहना चाहिए. इसको सुनिश्चित रखने के लिए पैदा होने वाला बच्चा स्वस्थ होगा.
दो तरह से रखा जाता है बच्चा
गाभिन पशु को 2 महीना पहले से ही पौष्टिक भोजन और पर्याप्त पानी दिया जाना चाहिए. जन्म के समय होने वाली परेशानियों से निपटने के लिए यह जरूरी है कि पीड़ा प्रारंभ होने के समय से ही पशु की हर समय देखभाल की जाए. यदि जन्म देने के समय पशुओं को कोई परेशानी हो तो या सहायता की जरूरत हो तो किसान भाइयों को पशुओं की मदद करनी चाहिए. इसके बाद आता है बच्चे को पालने का तरीका, इसे दो तरह से पाला जा सकता है. बच्चों को मां के साथ रखा जाता है या फिर दूसरा तरीका ये है कि बच्चों को मन से अलग रखा जाता है. बच्चों को अलग करने के कई फायदे होते हैं. पशु का बच्चा मर भी गया है तो मां सही दूध देती रहेगी.
सही मात्रा में दूध पिलाना चाहिए
वहीं बच्चों को सही मात्रा में उसकी आवश्यकता अनुसार दूध पिलाया जाना चाहिए. जब बछड़े को मां से अलग कर दिया जाए तो बछड़े को साफ तौलिया लिया से या फिर भूसे से रगड़कर साफ कर देना चाहिए. बछड़े के नाक और मुंह से श्लेष्मा निकालने लगे तो उसे उल्टा लटका देना चाहिए. ताकि नाक, मुंह से श्लेष्मा बाहर निकल जाए. इस तरह से बच्चा ठीक प्रकार से सांस लेना शुरू कर देता है. उसके जन्म के फौरन बाद बच्चे की नाभि को साफ कैंची से तीन चार इंच छोड़कर काट देना चाहिए. फिर उसपर टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए और उसे तीन-चार दिन तक लगाते रहें.
बच्चे को कितना खीस पिलाएं
इसके बाद बछड़े को खीस पिलाना चाहिए और इस दौरान मां की पिछले भाग की अच्छी तरह से सफाई करें और मां के थनों को नीम की पट्टी और लाल दवा से अच्छी तरह से साफ कर देना चाहिए. धोने के लिए उबला पानी इस्तेमाल करें. बर्तन में खीस निकालकर नवजात पशुओं को पिलाएंं. क्योंकि खीस पीने से बच्चे को रोग से बचाया जा सकता है. क्योंकि उसके अंदर रोग से बचने की बहुत क्षमता होती है. 1 घंटे के अंदर उसे खीस पिला देना चाहिए. खीस की मात्रा बच्चों के चजन के बराबर होना चाहिए. एक दिन में ढाई तीन किलो खीस बराबर मात्रा में बांटकर दो-तीन बार में देना चाहिए और 5 दिन तक उसे पिलानी चाहिए.
कब पिलाना चाहिए पानी
खीस पिलाने के 1 घंटे पहले और 1 घंटे बाद है उसे पानी नहीं पिलाया जाए और उसके बाद छोड़ दिया जाता है तो बच्चा मां के थन से दूध पी लेता है लेकिन जब उसको अलग रखा जाता है तो यह जरूरी होता है कि उसे बर्तन से दूध पिलाना सिखाया जाए. एक्सपर्ट कहते हैं कि बच्चों का मुंह बर्तन के पास ले जाना चाहिए. जन्म वाले दिन बछड़े को एंटीबायोटिक पाउडर भी देना चाहिए. जिससे दस्त और संक्रमण होने की संभावना कम हो जाती है. प्रथम माह में बच्चों को अकेले रखा जाना चाहिए और उसकी अच्छी तरह से देखभाल की जाए. बच्चों को एक दूसरे को चाटने ना दें इससे बाल मुंह में चले जाने से संक्रमण हो जाता है.
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