Home मछली पालन Fisheries: क्या मछलियों को ज्यादा एंटीबायोटिक देने से इंसानों पर भी पड़ता है इसका बुरा असर, पढ़ें यहां
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Fisheries: क्या मछलियों को ज्यादा एंटीबायोटिक देने से इंसानों पर भी पड़ता है इसका बुरा असर, पढ़ें यहां

Interim Budget 2024
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. मछली सेक्टर देश में तेजी के साथ बढ़ने वाला क्षेत्र है. दावा किया जा रहा है कि साल 2030 तक ये सेक्टर आसमान की बुलंदियों पर होगा. मछली उत्पादन स्तर में 59 प्रतिशत तक का इजाफा हो सकता है. हालांकि इस क्षेत्र में जहां तमाम वृद्धि की बात की जा रही है वहीं एक व्यापार के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियों भी हैं. खैर ये तो रही मछली के सेक्टर के बढ़ने की बात. मछली पालन में आजकल एंटीबायोटिक का इस्तेमाल खूब किया जाता है. इस वजह से ये सवाल रहता है कि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना कितना सही है?

एंटीबायोटिक से मछलियों का उत्पादन तो बढ़ रहा है लेकिन क्या मछलियों की क्वालिटी के साथ-साथ इंसानों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है. आइए इसे जानते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि एंटीबायोटिक्स का उपयोग मुख्य रूप से उनके आहार (मेडिकेटेड फीड) के माध्यम से किया जाता है. इसके अलावा एंटीबायोटिक्स का इंजेक्शन और एंटीबायोटिक से उपचारित पानी में रखने के रूप में भी उपयोग होता है. अधिकतर समय एंटीबायोटिक्स बचे हुए आहार या मल से निकलकर तलछटी में समा जाते हैं.

हेल्थ के लिए ठीक नहीं है
विशेषज्ञों के मुताबिक ये बाकी एंटीबायोटिक्स तलछटी के माइक्रोफ्लोरा की संरचना को बदलते हैं और इससे एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोध शुरू होता है. आजकल सीवेज, कृषि और औद्योगिक अपशिष्ट से प्रदूषित साफ पानी सहित समुद्री और मीठे पानी में एंटीबायोटिक्स प्रतिरोधी बैक्टीरिया बहुत जयादा ही पाये जाते हैं. दरअसल गहन उपचार के बाद, इस पानी का उपयोग मछली फार्मों और हैचरी में किया जाता है. प्रदूषित जल के अंतहीन उपचार के बावजूद, इसमें एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया की मात्रा कम नहीं होती. संपर्क में आने पर यह एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया मछली फार्मों और हैचरी में सामान्य माइक्रोफ्लोरा को बदल देता है, जो मछली के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह माना गया है.

आंत में हो सकती है प्रॉब्लम
ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, मछली फार्मों और हैचरी में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं में से एक है. यह मछली के इंटेस्टिनल ट्रैक के जरिए से अवशोषित होती है. इसे 10-15 दिनों के लिए प्रतिदिन 100-150 मि.ग्रा. प्रति कि.ग्रा. मछली की उच्च खुराक दर पर दिया जाता है. इस उपचार के चलते इस एंटीबायोटिक का बड़ी मात्रा में धीमी गति से उत्सर्जन होता है. इससे आंत में ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन-प्रतिरोधी बैक्टीरिया की उपस्थिति होने की आशंका बढ़ जाती है.

एलर्जी का खतरा
मछलीपालन में एंटीबायोटिक दवाओं की एक वाइड रेंज के उपयोग से बैक्टीरिया संक्रमण के नियंत्रण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, पर इसके ज्यादा इस्तेमाल से जुड़े कुछ दुष्प्रभाव मछली और पर्यावरण दोनों को प्रभावित करते हैं. मछली उत्पादों में दवा के अवशेषों की उपस्थिति बढ़ने का कारण एंटीबायोटिक्स का जरूरत से ज्यादा उपयोग है. इन उत्पादों का बाजार में व्यावसायीकरण किया जाता है जो आगे मनुष्य द्वारा उपभोग किए जाते हैं. इंसानों द्वारा इन एंटीबायोटिक दवाओं के इंविजि​बेल इंजेशन से बॉडी में प्रतिरोध पैदा हो जाता है. इससे एलर्जी और प्रोआइजनिंग हो सकती है.

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