नई दिल्ली. मछली पालन के साथ अगर बत्तख पालन भी किया जाए तो यह काम और ज्यादा मुनाफे वाला हो जाएगा. इसमें कम लागत में ज्यादा उत्पादन होता है. इससे मछली पालन पर होने वाले खर्च में तकरीबन 60 फीसदी की कटौती हो जाती है. इससे मछली पालन का काम और ज्यादा फायदा देता है. बत्तख से भी आपको 24वें हफ्ते की उम्र के बाद से और 2 साल तक अंडा मिलता रहता है. जिसे जिसे बेचकर भी आप कमाई कर सकते हैं. वही बत्तखों से आपको मीट भी मिलता है, जिससे भी कमाई होती है. इसलिए मछली पालन के साथ बत्तख पालन का काम बेहद ही फायदेमंद है.
फिश एक्सपर्ट कहते हैं कि बत्तख पालन के दौरान आमतौर पर वेस्ट होने वाली बीट मछलियों के लिए आहार का काम करती हैं. वहीं मछली पालन के तालाब में बत्तखों को रखने से तालाब की सफाई भी हो जाती है. इसके और भी कई फायदे हैं. इसलिए मछली पालन के साथ बत्तख पालन बेहद ही फायदेमंद होता है. आइए इस बारे में जानते हैं.
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फिश एक्सपर्ट कहते हैं कि बतखों को आमतौर पर जैविक जलवाहक कहा जाता है. इसका मतलब यह है कि इससे तालाब में मछलियों को जैविक खाद मिलती है.
उन्हें कम लागत वाले तालाब में पाला जाता है. इस मेथड से तमिलनाडु, असम, बिहार, आंध्र प्रदेश, उडीशा, केरल और उत्तर प्रदेश में मछली पालन किया जा रहा है.
इस तरह के पालन में भारतीय धावक, खाकी कैंबल प्रजाति की बत्तखों को पाला जाता है. तालाब किनारे एक दबड़े में रहती हैं. फिर सुबह उन्हें तालाब में छोड़ दिया जाता है.
अगर आपके पास एक एकड़ का तालाब है तो उसमें 300 बत्तखों के चूजों को शुरुआत में पाला जा सकता है. इसका फायदा ये भी होता है कि बत्तख अपने पैरों से तालाब के पानी को हिलाती रहती है.
इससे मछली पालन में एरिएटर की जरूरत नहीं पड़ती है. क्योंकि बहुत सी मछलियां ऐसी होती हैं, जिन्हें ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. जिसके लिए एरिएएटर चलाना पड़ता है.
वहीं तालाब के अंदर खरपतवार और कीड़े मकोड़े को भी ये बत्तखें खा जाती हैं. इससे भी मछलियों को बेहद ही फायदा मिलता है.
वहीं बत्तखों को 0 से 3 और 0 से 5 वर्ग मीटर क्षेत्र की जरूरत होती है. इस तरह के मेथड से 3500 से 5000 किलोग्राम मछली 18000 से 18000 अंडे और 600 किलोग्राम तक मांस मिलता है.
फिश एक्सपर्ट का कहना है कि बत्तख पालन का ये भी फायदा है कि मलमूत्र का इस्तेमाल नेचुरल फार्मिंग के लिए खाद के तौर पर किया जाता है.
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