नई दिल्ली. प्रजनन पशुपालन की अहम कड़ी है. प्रजनन जहां पशुओं की नस्लों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं इसके जरिए किसी भी इलाके के लिये विकसित पशुओं की नस्लों के शुद्ध गुणों को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजकर रखने का भी काम किया जाता है. हालांकि एक्सपर्ट का कहना है कि जिस तरह से देश में ज्यादा दूध उत्पादन लेने के लिये विदेशी क्रॉसब्रीड गाय की नस्लों को बढ़ावा दिया गया, उससे भारतीय नस्लों के संरक्षण एंव प्रमोशन रुकावट देखी जा रही है. इसके चलते इस वक्त क्रासब्रीड गायें कई क्षेत्रों में अनेकों समस्याओं जैसे- बांक्षपन, बार-बार गर्मी में आना लेकिन गर्भ नहीं ठहरना, थनैला आदि गभीर समस्याओं के चलते फायदे की बजाय घाटे का कारण ही बन रहीं हैं.
एक्सपर्ट के मुताबिक इन गायों का दूध भी आज एक अहम चर्चा का विषय बनकर सामने आ रहा है. वैज्ञानिकों से लेकर आम जागरूक लोगों में ए 1 एवं ए 2 दूध के प्रति रुचि से लेकर गंभीर चिंताएं हैं, जिनका निवारण मिलना अभी बाकी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विदेशी एवं संकर (क्रॉसब्रीड) गायें भारतीय जलवायु के अनुकूल नहीं हैं? क्या देश में क्रॉसब्रीड गायों का भविष्य उज्वल नहीं हैं?
इस समस्या का निकल सकता है हल
भारत सरकार की पहल को देखा जाये तो कुछ ऐसा ही लगता है. भारत सरकार आज गोकुल मिशन के माध्यम से देश की जलवायु के अनुकूल विकसित नस्लों को ही बढ़ावा देने के किये कार्य कर रही है. जिसमें देश की अधिक दुग्ध उत्पादन करने वाली गायों जैसे, साहीवाल, गिर, रेड सिंधी, राठी, थारपारकर आदि प्रमुख नस्लें हैं. यह नस्लें पूरी तरह से भारतीय जलवायु के अनुकूल हैं. इसी प्रकार से क्षेत्र विशेष में पायी जाने वाली नस्लों को बढ़ावा देकर उनके दूग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी के प्रयास करके जलवायु परिवर्तन से प्रजनन की समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है. वहीं इससे किसानों को भी फायदा होगा, जब उन्हें दूध ज्यादा मिलेगा तो उनकी इनकम में भी इजाफा होगा.
बाढ़ एवं सूखे से भी है दिक्कत
क्लाइमेट चेंज से सिर्फ तापमान में ही बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है, बल्कि प्रकृति में कई अन्य बड़े बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा देखा जा सकता है. यह दोनों ही स्थिति पशुपालन के लिये बेहद ही नुकसान दायक हैं. बाढ़ की स्थिति में पशुधन का जीवन ही संकट में पड़ जाता है तो वहीं सूखा के कारण चारे का अभाव पशुओं के जीवन यापन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. हर साल देश के अनेक भागों में इसके चलते लाखों की संख्या में पशुधन का नुकसान होने के साथ ही आर्थिक रूप से उत्पादन पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ता है. यह परिस्थितियां जलवायु में हो रहे परिवर्तन के कारण साल दर साल तेजी से सामने आ रहीं हैं.
Leave a comment