नई दिल्ली. ऐसा कौन सा पशुपालक है जो नहीं चाहता कि उसकी भैंस ज्यादा से ज्यादा दूध दे. चूंकि दूध ही आय का एक जरिया है, इसलिए पशुपालक हर हाल में दूध ज्यादा लेना चाहते हैं. जब भैंस या फिर कोई और पशु दूध कम देता है तो फिर पशुपालकों को नुकसान उठाना पड़ता है. पशु को चाहे जो भी खिलाना पड़े, पशुपालक खिलाते हैं लेकिन उनकी यही चाह होती है कि पशु से दूध ज्यादा से ज्यादा हासिल हो सके. इस वजह से पशुपालक पशुओं को महंगा से महंगा चारा और मिनरलस मिक्सर्च तक खिलाते हैं और इससे उनका चारे का खर्च बहुत बढ़ जाता है.
हालांकि मराठवाड़ी नस्ल की भैंस इतनी शानदार है कि ये कम क्वालिटी वाला चारा खाने के बाद भी दूध का उत्पादन करती है और वो भी क्वालिटी से भरपूर. इस नस्ल की भैंस को साधारण चारा खिलाकर भी अच्छा उत्पादन हासिल किया जा सकता है. अगर आप भी भैंस पालने का विचार कर रहे हैं तो इस भैंस को पाल सकते हैं. वहीं सूखे और गर्मी वाले इलाके में भी खूब बहुत अच्छी तरह से एडजेस्ट करने की क्षमता रखती है.
जानें एक ब्यात का मिल्क प्रोडक्शन
जानकारी के मुताबिक मराठवाड़ी नस्ल महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पाई जाती है. इन इलाकों में इस भैंस को बहुत से पशुपालक पालते हैं और अच्छी कमाई करते हैं. इस भैंस की खासियत ये है कि यह सूखे व गर्मी के प्रति अधिक सहनशील होती है. सूख और गर्मी के मौसम में इसे किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं हेाती है. वो खुद को एडजेस्ट कर लेती है. वहीं यह कम गुणवत्ता वाले चारे को भी खाकर अधिक दूध देती है. इसकी प्रथम बंयात पर उम्र 52-54 महीने होती है. दूध का औसत उत्पादन 305 दिनों का 1000 किलोग्राम है. औसत दुग्ध काल 270 दिनों का है, तथा बंयात अन्तराल 430 दिनों का होता है.
क्या है इस नस्ल की पहचान, जानें यहां
इस भैंस की पहचान की बात की जाए तो यह भैंस माध्यम आकार की होती है. तथा शरीर सुडोल होता है इनके शारीर का रंग ग्रेयिश ब्लैक से लेकर जेट ब्लैक तक होता है. इसके सींग माध्यम आकार के व गर्दन के समांतर होते हुए कन्धों तक जाते हैं. इसका चेहरा पतला तथा लम्बा व माथे पर एक सफ़ेद धब्बा होता है. जो प्रायः इस नस्ल की भैंसों में होता है. इस भैंस की पूँछ आकार में छोटी तथा पूंछ के अंत में एक सफ़ेद बालों का गुच्छा होता है.
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