नई दिल्ली. पशुओं में ऐसी कई बीमारियां जो उनके दूध उत्पादन को तो घटाती ही हैं. साथ ही उनकी सेहत को खराब कर देती हैं और इससे कई बार पशुओं की मौत भी हो जाती है. जिसके नतीजे में पशुपालकों को हजारों का नुकसान सहना पड़ता है. इसलिए पशुपालक हमेशा ही पशुओं को बीमार होने से बचाना चाहते हैं. हालांकि पशु बीमार न हों, इसके लिए इस बात की जरूरत है कि पशुपालकों को बीमारियों के बारे में पूरी जानकारी हो. मसलन पशुओं को बीमारी कैसे होती है. इसे कैसे रोका जाए. अगर पशु बीमार पड़ जाएं तो फिर इलाज क्या है. इन सब की जानकारी होना अहम है.
इस आर्टिकल में हम आपको पशुओं में होने वाली ब्रूसेलोसिस यानि छूतदार गर्भपात के बारे में बात करने जा रहे हैं. इसका खतरा क्या है. क्यों होती है ये बीमारी इसके बारे में भी प्वाइंट में जानेंगे. आइए डिटेल में पढ़ें.
क्या है नुकसान
- गाय/भैंसों में यह एक महत्वपूर्ण बैक्टीरियल बीमारी है.
- दूध उत्पादन में कमी, बछड़े के का नुकसान, बीमार या कमजोर बछड़ी का पैदा होना, बार-बार गर्मी में आना और थनैला भी होता है.
- संक्रमित पशु के बिना उबले हुए दूध को पीने से या गर्भाशय के स्राव के संपर्क में आने से इंसान भी इस बीमारी से बीमार हो सकते हैं.
- यह बीमारी भारत में पशुओं और इंसानों में बड़े तौर पर होती है.
- गर्भपात की बात की जाए गर्भ के 5वें माह के बाद होता है.
- एक संक्रमित पशु में, गर्भपात की संभावना प्रसव की संख्या के साथ कम होती है.
- ऐसा भी हो सकता है कि चौथे प्रसव के बाद कोई गर्भपात नहीं हो लेकिन गाय व बछड़ी संक्रमित हो सकते हैं.
- जेर के रुकने से संक्रमण और पशु की मृत्यु भी हो सकती है.
रोकथाम कैसे करें
- जीवन में एक बार केवल बछड़ी को 4-3 माह की आयु में टीकाकरण कराएं.
- 5वें माह के बाद होने वाले गर्भपात को ब्रुसेलोसिस की शंका से देखें.
- संक्रमित पशु को समूह से हटा दें यदि ऐसा करना संभव न हो तो उस पशु को अन्य पशुओं से उसके प्रसव/गर्भपात के तुरंत बाद कम से कम 20 दिनों के लिए अलग कर देना चाहिए.
- गर्भपात हुए बच्चे, जेर, गंदे बिछावन, दाना, चारा इत्यादि को कम से कम 4 फोट गड्ढे में चूना डालकर दब देना चाहिए.
- इन पदार्थों में बहुत अधिक मात्रा में बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जिनका निपटारा यदि सही तौर पर न हो तो ये बीमारी फैलने का कारण बन सकता है.
- गर्भपात हुए पशु को अलग करने के बाद शेड को संक्रमण मुक्त करें.
- जब पशु अलग हो तो उसके गर्भाशय से निकलने वाला मटमैला रूाव (लोशिया) जिनमें अधिक मात्रा में जीवाणु लेते हैं.
- 1-2% सोडियम हाइड्रोक्साइड या 5% सोडियम हडपोक्लोराइट (ब्लीच) से रोज संक्रमण मुक्त करना जब तक लोशिया का बहाव बंद न हो जाए.
- यह बीमारी जूनोटिक है. इसलिए संक्रमित पदार्थों को खुले हाथ से नहीं पकड़ना छूना चाहिए.
उपचार कैसे किया जाए
- एक बार पशु के संक्रमित हो जाने के बाद इसका कोई प्रभावी इलाज नहीं है.
- बैक्टीरिया पशु के शरीर में मौजूद रहता है. शक की स्थिति में पशुचिकित्सक से संपर्क करें.
- इंसानों में इस बीमारी का उपचार हो सकता है. बशर्ते उपचार के लिए सही तरह से इलाज किया जाए.
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