Home पशुपालन Fodder: एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और न्यूजीलैंड की मैसी यूनिवर्सिटी करेगी मोरिंगा पर रिसर्च, जानें क्या है वजह
पशुपालन

Fodder: एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और न्यूजीलैंड की मैसी यूनिवर्सिटी करेगी मोरिंगा पर रिसर्च, जानें क्या है वजह

MORINGA TREE, MILK, GREEN FODDER, Moringa, Moringa cultivation, Moringa fodder, Drumstick crop, Drumstick cultivation, Moringa rates,
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि यूनिवर्सिटी में 10 दिवसीय इंटरनेशनल वर्कशॉप की शुरुआत की गई. मौलिक विज्ञान और ह्यूमेनिटज़ कॉलेज के बायो केमेस्ट्री डिपार्टमेंट की ओर से आयोजित इस वर्कशॉप में मोरिंगा चारा फसल को लेकर चर्चा हुई. यहां तय हुआ कि एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और न्यूजीलैंड की मैसी यूनिवर्सिटी की एक टीम संयुक्त रूप से इस चारा फसल पर रिसर्च करेगी. बताते चलें कि इससे पहले वर्कशॉप की शुरुआत यूनिर्सिटी के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने किया और उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और मौसम में हो रहे बदलाव के कारण मोरिंगा के बीज तथा पत्तियों में टैनिन और एंटीऑक्सीडेंट प्रोपर्टीज पर पड़ने वाले प्रभाव पर रिसर्च किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि इसी कड़ी में कृषि यूनिवर्सिटी में भी मोरिंगा फसल पर तमाम तरह के शोध कार्य जारी हैं. उन्होंने बताया कि इसके लिए हिमालय रीज़न, उतराखंड व दक्षिणी क्षेत्र के कई स्थानों से मौरिंगा के सैंपल भी लिए जाएंगे. उनका कहना था कि मोरिंगा दुनिया के सबसे पौष्टिक फसलों में से एक फसल है और इसके कई फायदे हैं. मोरिंगा में कैरोटीन, प्रोटीन, विटामिन सी, कैल्शियम, पोटैशियम और आयरन भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है. मोरिंगा के अनेक उपयोगों ने वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और किसानों का ध्यान आकर्षित किया है.

यहां पढ़ें मोरिंगा की खासियत
उन्होंने मोरिंगा फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए जलवायु परिस्थतियों के बारे में बताते हुए कहा कि मोरिंगा 25 से 35 डिग्री के बीच सबसे अच्छा बढ़ता है लेकिन यह लगभग 48 डिग्री तक तापमान और हल्की ठंड भी सहन कर सकता है. मोरिंगा की 250 से 1500 मिलीमीटर तक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी पैदावार ली जा सकती है. मोरिंगा फसल के लिए रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त है और यह 6 से 8 की पीएच को सहन कर सकता है. इस कार्यशाला में 25 प्रतिभागी भाग ले रहे हैं जिसमें न्यूजीलैंड, डैनमार्क व आस्ट्रेलिया के प्रतिक्षठित संस्थानों के वैज्ञानिकगण अपना व्याख्यान देंगे.

मोरिंगा का ये भी है फायदा
अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि मोरिंगा को ‘ड्रमस्टिक’ या सहजन के नाम से भी जाना जाता है. यह एक ट्रॉपिकल पेड़ है. भारत और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में इसकी खेती होती है. इसके पेड़ का हर हिस्सा हैल्थ के लिए फायदेमंद है. इसकी पत्तियां प्रोटीन का एक बड़ा सोर्स हैं और इसमें सभी महत्वपूर्ण एमीनों एसिड भी होते हैं. मोरिंगा की पत्तियां शरीर में ऊर्जा बढ़ाने के साथ-साथ डायबिटीज, इम्यून सिस्टम, हड्डियों और लीवर सहित विभिन्न बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं.

दो रिर्सचर करेंगे मैसी यूनिवर्सिटी का दौरा
डीन डॉ. जयंती टोकस ने बताया कि मोरिंगा पर रिसर्च के लिए यूनिवर्सिटी के मौलिक विज्ञान और ह्यूमेनिटज़ कॉलेज के दो रिर्सचर मैसी यूनिवर्सिटी का दौरा करेंगे. इसी कड़ी में मोरिंगा को लेकर विश्वविद्यालय में इस इंटरनेशनल कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. मौलिक विज्ञान और ह्यूमेनिटज़ कॉलेज के चीफ डॉ. राजेश गेरा ने कार्यशाला में आए हुए सभी प्रतिभागियों एवं अधिकारियों का स्वागत किया. धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. अक्षय भूकर ने दिया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, शिक्षक, गैर शिक्षक, प्रतिभागी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

GOAT FARMING, LIVE STOCK NEWS, Solar Dryer Winter Protection System
पशुपालन

Goat Farming: शुरू करना चाहते हैं बकरी पालन तो बकरियों की इन नस्लों को चुने, मिलेगा ज्यादा फायदा

यह व्यावसाय कम जमीन तथा भूमिहीन श्रमिकों के लिए एक अच्छा है....

Semen Bank, Sahiwal, Rathi, Desi Cow, Embryo Transplantation Technology, Pandit Deendayal Upadhyaya University of Veterinary Sciences, Mathura
पशुपालन

Cow Husbandry: उन्नत नस्ल की इन तीन गायों को पालें तो डेयरी सेक्टर में होगी खूब कमाई, पढ़ें डिटेल

जो पशुपालन के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती हैं. पशुपालन...

animal husbandry
पशुपालन

NDDB ने बताया कैसे घर पर ही दवा बनाकर थनैला बीमारी का किया जा सकता है इलाज

पहला तरीका पानी आधारित है और दूसरा तेल आधारित. पानी आधारित इलाज...