हिसार. अरुणाचल प्रदेश का राजकीय तो पूर्वोत्तर राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों का प्रमुख पशु है गोजातीय प्रजाति का मिथुन. जहां तक रही मिथुन की बात तो ये बोविडे परिवार से संबंध रखने वाली और जुगाली करने वाली प्रजाति का जानवर हैं. जबकि इन्हें जंगली गौर (बोस गौरस) का पालतू रूप भी कहा जाता है. मिथुन के बारे में आईसीएआर-एनआरसी की वेबसाइट पर जो जानकारी है उसके मुताबिक ये पूर्वी हिमालय का मूल निवासी है और इसे भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का ‘बलि का बैल’ भी कहते हैं.
30 मिनट में आ जाएगा किट का परिणाम
हजारों वर्षों का इतिहास समेटे इस पशु के पालकों में प्रजनन संबंधी दुविधा दूर करने के लिए केंद्रीय भैंस अनुसंधान केंद्र (सीआइआरबी) की हिसार इकाई ने नई किट तैयार की है. इसे प्रेग-डीएम किट का नाम दिया गया है. यह किट पहाड़ों का मवेशी कहे जाने वाले मिथुन के गर्भ ठहरने अथवा नहीं ठहरने की जानकारी देगी. पहाड़ी व जनजातीय क्षेत्रों से मांग पर तैयार प्रेग-डीएम किट 30 दिन बाद 30 मिनट में ही बता देगी कि मिथुन प्रेग्नेंट है या नहीं. यह किट करीब तीन लाख मिथुन के पालक किसानों के लिए लाभकारी होगी. दरअसल, पूर्वोत्तर के राज्यों में पशुपालकों के लिए संसाधनों की सीआइआरवी ने पूर्वोत्तर के राज्यों में पाये जाने वाले पशु मिथुन के गर्भ की सच्चाई पशुपालकों को बताने वाली किट तैयार की. कई जनजातीय समुदायों के पशुपालक भी हो सकेंगे लाभान्वित, नगालैंड में राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र मिथुन हो सकेगा आत्मनिर्भर.
ऐसे करते हैं पशु का टेस्ट
केंद्रीय भैंस अनुसंधान केंद्र हिसार के विज्ञानी डाक्टर अशोक कुमार बल्हारा इस प्रेग-डीएम किट में तीन केमिकल की शीशी होती हैं. गर्भावस्था की जांच के लिए पहली शीशी से तीन और दूसरी शीशी से छह ड्राप केमिकल लेते हैं. उसमें दो एमएल मिथुन का शौच मिलाया जाएगा. उसको 20 मिनट तक 90 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करना होगा. थोड़ा ठंडा करने के बाद तीसरे कैमिकल को उसमें मिलाना होगा. यदि गाढ़ा भूरा रंग होता है तो पशु को गर्भ ठहरा है, यदि दूसरा रंग आता है वह गर्भावस्था में नहीं है.
हजारों साल पहले हुई थी मिथुन की उत्पत्ति
वैज्ञानिकों की मानें तो मिथुन की उत्पत्ति आठ हजार साल पहले हुई थी. मांस के अलावा, मिथुन को बलि प्रयोजनों या वस्तु विनिमय व्यापार के लिए पाला जाता है. इनका प्राकृतिक आवास उच्चभूमि के जंगल हैं. मिथुन, एक अनोखी गोजातीय प्रजाति है जिसका भौगोलिक वितरण सीमित है. यह मुख्य रूप से अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में पाया जाता है.
ऐसे होता है किट का प्रयोग
मिथुन एक समय में तीन से चार लीटर तक दूध देता है. व्यस्क पशु से 600 किलो तक मांस मिलता है. इसके सींग से नगालैंड में म्यूजिक यंत्र भी बनाया जाता है. बताया जाता है आदिवासी क्षेत्र में जिस ग्रामीण के पास सबसे ज्यादा मिथुन होते हैं वह काफी समृद्ध है.
केंद्र की आत्मनिर्भरता को भी बढ़ाया
डाक्टर सज्जन सिंह, केंद्रीय भैंस अनुसंधान केंद्र हिसार में पशु शरीर क्रिया एवं प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम में मिथुन पशु होता है. इसके अलावा बांग्लादेश, म्यांमार और चीन में भी यह पशु मिलता हैं. अब सीआइआरबी ने किट बनाकर न केवल उनकी मांग पूरी की है बल्कि नगालैंड के केंद्र की आत्मनिर्भरता को भी बढ़ाया है. पहले मिथुन जानवर के गर्भ की समस्या थी. गर्भ ठहरा या नहीं, इसका किसान को कई माह बाद पता चलता. तब तक काफी पैसा पशु पर खर्च कर देता था लेकिन अब परेशानी का हल निकलेगा.
संस्थान ने प्रजनन प्रबंधन में अहम रोल अदा किया
मिथुन पर आईसीएआर-एनआरसी इस प्रजाति के संरक्षण, प्रजनन और स्वास्थ्य प्रबंधन में अहम रोल अदा कर रहा है. संस्थान के वैज्ञानिकों ने गुजरे 28 सालों में मिथुन पालन को एक टिकाऊ कामर्शियल इस्तेमाल के मकसद से किसानों के अनुकूल प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के लिए एक पैकेज विकसित किया है.
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