नई दिल्ली. आंध्र प्रदेश के पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी जिलों के अंदरूनी हिस्से झींगा टैंकों से घिरे नजर आते हैं. यहां हजारों एकड़ में झींगा उत्पादन किया जाता है जो यूरोप, अमेरिका और जापान में ग्राहकों की प्लेट में नजर आते रहे. जब हालात अच्छे थे तो जलकृषि ने क्षेत्र के कारण कई किसानों की किस्मत बदल गई. बात की जाए 1990 के दशक की तो तब मध्य में आंध्र प्रदेश में पेश की गई झींगा संस्कृति ने पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी के तटीय जिलों, कृष्णा और नेल्लोर के कुछ हिस्सों में स्थानीय लोगों की अर्थव्यवस्था को बदल कर रख दिया. वहीं इसके चलते किसानों को पारंपरिक धान और अन्य उत्पादों का विकल्प भी मिल गया था. इस वजह से किसानों ने खासतौर पर गोदावरी और कृष्णा जिलों में तो अपनी कृषि भूमि को झींगा टैंकों में बदल दिया था लेकिन वक्त ने करवट ली और अब इन किसानों के सामने कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो गईं हैं. इससे झींगा कारोबार को भी झटका लगा है.
बढ़ती लागत ने किसानों की कमर तोड़ी
दरअसल बढ़ती लागत के कारण और अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा ने जलीय किसानों की कमर तोड़कर रख दी है. ताड़ीकोना गांव के निराश सदानाला सत्तीबाबू ने डीएच कहते हैं कि “मैंने अपने जीवन में ऐसी परेशानी कभी नहीं देखी. जिस तरह का हाल पिछले तीन वर्षों में है.” किसान सत्तीबाबू कहते हैं कि वो भाई नागाबाबू के साथ पिछले 20 वर्षों से झींगा पालन कारोबार से जुड़े हैं. करीब 20 एकड़ में झींगा की खेती करते हैं. अब हालात ये है कि न्यूनतम मूल्य भी मिलना मुश्किल हो गया है. घाटा सहकर भी काम करने को मजबूर हैं. ऐसा लगने लगा है कि ऐसे दलदल में फंसे हैं, जिससे बाहर नहीं निकल पाएंगे. हालात ये हैं कि फायदे की जगह पिछले कुछ वर्षों में प्रति एकड़ कुल औसत खर्च 300 गुना से ज्यादा बढ़ गया है. जबकि बिक्री मूल्य में सुधार नहीं हुआ है.
हर चीज पर महंगाई का असर
इसे ऐसा भी समझा जा सकता है कि जिस फ़ीड बैग कीमत 10 साल पहले 800 रुपये हुआ करती थी, अब लगभग 2,700 रुपये से 2,800 रुपये हो गई है. वहीं दवा, बीज, मैन पावर, भूमि पट्टे और बिजली शुल्क की लागत पिछले 10 वर्षों में बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं. देवरापल्ले बाला वेंकट सुब्रमण्यम कहते हैं कि अमलापुरम में 10 एकड़ और मछलीपट्टनम में 10 एकड़ जमीन में झींगा पालन किया है. घाटे के कारण 20 एकड़ में से तीन एकड़ में झींगा पालन नहीं करते हैं. जबकि घाटे को पूरा करने के लिए उन्होंने 3 एकड़ जमीन और बेचनी पड़ी.
सरकार से हस्ताक्षेप करने की मांग
सीफूड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन कुमार गुंटुरु ने कहा कि वे किसानों को जो कीमत देते हैं, वह “अंतरराष्ट्रीय बाजार में उन्हें मिलने वाली कीमत पर निर्भर करता है”. जबकि इक्वाडोर का झींगा, जिसकी लागत कम है, अंतरराष्ट्रीय बाजार में धूम मचा रहा है. झींगा उत्पादन, जो पांच साल पहले इक्वाडोर में सिर्फ चार लाख टन था, हाल ही में बढ़कर 1.2 मिलियन टन हो गया है.” पवन ने यह भी कहा कि सरकार को हस्ताक्षेप करना चाहिए और देखना चाहिए कि भारत से झींगा निर्यात में सुधार के लिए अन्य देशों के साथ व्यापार बाधाओं को दूर किया जाए.
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